गीत असा कसरूँ गावे

 

गीत असा कसरूँ गावे

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह ‘चटक म्हारा चम्पा’ की बत्तीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।








गीत असा कसरूँ गावे

गीत असा कसरूँ गावे रे गुणवान
गूँजे आखी धरती ने गूँजे आसमान

कईऽज हमझ में न्‍हीं आवे, करूँँ, कई करूँ
हुण्या करूँँ, हुण्‍या करूँँ, हुण्‍या ईऽज करूँ
पाछे-पाछ तान के म्हूंँ भागतो फरूँ
प्राण म्हारा बावरा, उतावरा है कान
गीत असा कसरूँ गावे  रे गुणवान

जगमगावे आखो जगत थारी तान में
या पवन समईगी आखा आसमान में
छटपटाईने आरपार वेई पखाण में
पूर नदी जसी चली जावे थारी तान
गीत असा कसरूँ गावे  रे गुणवान

मन तो यूँ करे के म्हूँ भी थारा सुर में गऊँ
लाख होदूँँ, न्‍हीं मले ई बोल, क्याँ ती लऊँ
कण्‍ठ ती नही फूटे बोल, गऊँ तो कसरूँ गऊँ
गावा बले छटपटावे वाचा का पिरान
गीत असा कसरूँ गावे  रे गुणवान

हार॒या आँसूड़ा ती आला म्हारा गाल है
म्हारे चाऽरे आड़ी, थारा सुर को जाल है
ऐ गुणी यो जाल, थारो कई कमाल है
फाँद्यो कसा फन्दा में ऐ दयानिधान
गीत असा कसरूँ गावे  रे गुणवान

 (गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजली के एक गीत का मालवी अनुवाद)

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‘चटक म्हारा चम्पा’ की तैंतीसवीं कविता ‘झील’ यहाँ पढ़िए







संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




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