.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ।
आज तो गूँजेगी धरती, सेवादल के नारों से
टकरायेंगी ये आवाजें, सूरज, चाँद, सितारों से
आज तो गूँजेगी धरती ओ.....
कदम मिला के चले बाँकुरे, अलबेले मस्ताने रे
सेवा, समता और मेहनत के, गाते हुए तराने रे
भारत नया बनायेंगे
स्वर्ग धरा पर लायेंगे
दो-दो बातें आज करेंगे, अम्बर के रखवारों से
टकरायेंगी ये आवाजें, सूरज, चाँद, सितारों से
आज तो गूँजेगी धरती ओ.....
अनुशासन का पाठ पढ़ा है, सेवा धर्म बनाया है
अमन और ईमाँ का हमने, नेजा नया उठाया है
नहीं किसी से नफरत है
सबसे प्यार मुहब्बत है
अभय करेंगे हम दुनिया को, जंगखोर खूँखारों से
टकरायेंगी ये आवाजें, सूरज, चाँद, सितारों से
आज तो गूँजेगी धरती ओ.....
जब तक मंजिल नहीं मिलेगी, नहीं रुकेगी ये टोली
बढ़ती ही बढ़ती जायेगी, आँधी हो या हो गोली
बलिदानी सन्तानें हैं
मंजिल के दीवाने हैं
हँसते-गाते गुजर जायेंगे, काँटों से, अंगारों से
टकरायेंगी ये आवाजें, सूरज, चाँद, सितारों से
आज तो गूँजेगी धरती ओ.....
दूर खड़े हैं जो भी हमसे, अभी वक्त है आओ रे
गीत अमन औ’ आजादी के, साथ हमारे गाओ रे
जीवन है इसका ही नाम
आज मेहनत, कल परिणाम
नये देश का परिचय कर दें, रूठी हुई बहारों से
टकरायेंगी ये आवाजें, सूरज, चाँद, सितारों से
आज तो गूँजेगी धरती ओ.....
‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ यहाँ पढ़िए।
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‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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