‘चटक म्हारा चम्पा’ की सत्ताईसवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
चाँद सरीखो वीरो
राजा इन्दर थोड़ो थम जा, मत बरसावे नीर
आज भरेगा झोरी म्हारी, जामण जायो बीर
म्हूँ भारत की जायी-परणी, ले पूजा को थार
चाली बीरो पूजवा, राखी बड़ो तेवार
म्हारो चाँद सरीखो वीरो रे
म्हूँओढ़, ओढ़नी पीरो रे
वीरा मंगल गाती आऊँ
म्हारापीहर का उजियारा
म्हारा चूड़ा का रखवारा
वीरा थाँ पर फूल चढ़ाऊँ
टादाजी ने दूर देस में, दी वीरा परणाय
गऊ जाया, ने बेटी वीरा, जाँ देवे व्हाँ जाय
हावण लागो, वाट नारवा लागी बारी माँय
वीरो म्हारो पीहर ती अब म्हाने लेवा आय
म्हूँ दन-दन गणती रे ती
वीरा, अन्न-पाणी न्हीं लेती
वीरा मन कसरूँ समझाऊँ
म्हारो चाँद सरीखो वीरो रे
भावज म्हारी घणी हठीली, जाठू है नखरारी
नणदल व्हाने खोटी लागे, तोड़े आसा म्हारी
पीहर में वण के भई कोन्ही, वणने बस या धारी
पूनम हावण की निकरी के, एक बरस की टारी
म्हारो जीव घणो घबरावे
थाने भावज काँ भरमावे
वीरा राखी कटे बधाऊ
म्हारो चाँद सरीखो वीरो रे
घणा हमझणा मिल्या ओ वीरा, म्हारी नणदल का वीर
न्हीं आया थी म्हाने लेवा, तो वर्णा बँधायो धीर
जाओ मारवण थें ही जाओ, काँ बरसाओ नीर
राखी अईगी वाट देखता वेगा थाँका वीर
म्हूँ बगर बुलाई आई
अब तो मिल लो म्हारा भाई
वीरा दो दन रूँँ, फेर जाऊँ
म्हारो चाँद सरीखो वीरो रे
भुवा म्हाने केवा वारा, व्हाला व्हाला लागे
निकरो वीरा बैन्याँ अईगी, नैग आपणो माँगे
राखी का दो डोरा बाँधूँँ, हाथ बढ़ाओ आगे
हिलमिल मंगल गावो भाभी, मेल जीव को भागे
म्हारे हिवड़ा ने हार घड़ावो
म्हारे पग, पायल पेरावो
महू बन ठण नाचूँ गाऊँ
म्हारो चाँद सरीखो वीरो रे
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संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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