लखारा

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की सत्रहवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।






 लखारा

पियूजी की गलियाँ में आजे रे लखारा
सैंंयाजी कौ गलियाँ में आजे रे लखारा
चुडला लावजे रुपारा-रुपारा
राजाजी की गलियाँ में

गाम का मोटा मन्दरिया के मेरे
गाम वारा जें आड़ी गायॉं उछेरे
छोटा छोटा ढार्‌या वारो रुपारो बगेलो
चम्‍पा की छाया रेटे अई ने करजे हेलो
डावे आड़ी मन्दर का तुलसी का क्यारा
जीमणे दिखेगा मज्जित की मीनाराँ
पियूजी की गलियाँ में आजे रे लखारा

गोरी-गोरी बईयाँ म्हारी चूड्याँ लावजे राती
होक ने बतऊँगा व्हा कूटेगा छाती
होकड़ली म्हारो घणी नखरारी
नकटो नसेड़ी जावे रे उधारी
नैण वणी का घणा ह॒त्यारा
चूडियाँ के बाँधवा ने लाजे डोरा कारा
राजाजी की गलियाँ में आजे रे लखारा

केसरिया भी लावजे हरियाली भी लावजे
नीली बिन्‍दी वारी धोरी भूली मती आवजे
पिया मन भावे असा रंग तू मिलावजे
तिरंगा की याद अईजा असरुँ पेरावजे
देस का बैरी कदी देखे हाथ म्हारा
जाणी जावे ई हाथ कोई नी हुँवाराह
पियूजी की गलियाँ में आजे रे लखारा

चुड़ला का निरखारु निखेगा म्हाने
पाणी लेवा जऊँ जदी देखे छाने-छाने
पाणत करी ने कुड़ा ती पाछी अऊँगा
वटा तक तो बईयाँ कणेई नी बतऊँगा
आरती की वेराँ हॉंजे वाजेगा नगारा
जबरी ती देखी लेगा रूप का रखवारा
पियूजी की गलियाँ में आजे रे लखारा

चुड़लो चिराऊँ लागू रम्भा सरोखी
चाँद ने सूरज की ऊमर पावे म्हारी टीकी
'बालकवि' खेले गोदी में आसा
आँगणॉं   में म्हारे रोज वटे रे पतासाँ
यू मत जाणजे मोलऊँगा उधारा
मोल चुकावे म्हारा नणदोई का हारा
पियूजी की गलियाँ में आजे रे लखारा

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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