यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
बकौल उनके
अपनी कुण्ठाओं के घोसलों में
वे राम जाने क्या-क्या सहते रहे
भविष्य पर विश्वास ही नहीं था उन्हें
इसलिए विगत कल के समर्थकों को
वे चापलूस कहते रहे ।
जब वर्तमान के पंखों पर
उतरा भविष्य आँगन में
तो वे चमत्कृत हैं।
अब उन्हें अपनी कुण्ठा
‘क्रान्ति’ से कम नहीं लगती
जयजयकार करती उनकी चोंच
रंचमात्र भी नहीं थकती।
अब कोई उन्हीं से पूछे
कि वे समर्थक हैं या चापलूस?
कहाँ जाकर रुकेगा उनका यह
‘क्रान्तिकारी’ जुलूस?
विगत कल और आगामी कल के
बीच वाला कल
वर्तमान नहीं तो और क्या है?
और वर्तमान को जीना
बकौल उनके
भविष्य का अपमान नहीं तो
और क्या है?
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वे राम जाने क्या-क्या सहते रहे
भविष्य पर विश्वास ही नहीं था उन्हें
इसलिए विगत कल के समर्थकों को
वे चापलूस कहते रहे ।
जब वर्तमान के पंखों पर
उतरा भविष्य आँगन में
तो वे चमत्कृत हैं।
अब उन्हें अपनी कुण्ठा
‘क्रान्ति’ से कम नहीं लगती
जयजयकार करती उनकी चोंच
रंचमात्र भी नहीं थकती।
अब कोई उन्हीं से पूछे
कि वे समर्थक हैं या चापलूस?
कहाँ जाकर रुकेगा उनका यह
‘क्रान्तिकारी’ जुलूस?
विगत कल और आगामी कल के
बीच वाला कल
वर्तमान नहीं तो और क्या है?
और वर्तमान को जीना
बकौल उनके
भविष्य का अपमान नहीं तो
और क्या है?
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
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