चटक म्हारा चम्पा’ की पाँचवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
वीरा की अटारी
म्हारा सायबा रे
म्हने नही भावे नगरी थारी
याँ से दीखे कोन्ही वीरा की अटारी
डावे बाऽने नारताँ जी कोई, आड़ो आवे पहाड़
जीमणे म्हारा जेठ ने जी कोई, करदी हवेली की आड़
बारी में ती नारताँ जी कोई, अड़े अम्बुवा की डार
अरे कोई काटी न्हाको रे
अणी आँबा की झमकारो
म्हूँ देखी लूूॅूँ वीरा की अटारी
जीमणे म्हारा जेठ ने जी कोई, करदी हवेली की आड़
बारी में ती नारताँ जी कोई, अड़े अम्बुवा की डार
अरे कोई काटी न्हाको रे
अणी आँबा की झमकारो
म्हूँ देखी लूूॅूँ वीरा की अटारी
पाण्यो भरवा जावताँ जी कोई, छीजे म्हारो सरीर
सखियाँ भरले बेवड़ा जी कोई, म्हूँ बरसाऊँ नीर
पणघट ती दीखे पियाजी कोई, सब सखियाँ का पीर
कणी दन करी दूगा रे,
अणी बावड़ी ने हत्यारी
याँ से दीखे कोन्ही वीरा की अटारी
नणदल बोली खेत में जी कोई, भाभी ऊ थारो गाम
व्ही गोयरा का रुँखड़ा जी कोई, ऊ देवरा को मुकाम
कर कर ऊँची ऐड़ियां जी कोई, देख्यो मुलक तमाम
अरे ई हूजी गी रे
पगाँ की आँगर्याँ म्हारी
पण दीखी कोन्हीं वीरा की अटारी
व्ही गोयरा का रुँखड़ा जी कोई, ऊ देवरा को मुकाम
कर कर ऊँची ऐड़ियां जी कोई, देख्यो मुलक तमाम
अरे ई हूजी गी रे
पगाँ की आँगर्याँ म्हारी
पण दीखी कोन्हीं वीरा की अटारी
चड्याँ, चरकल्याँ, कागला जी कोई, मोटा थाँका भाग
उड़ी उड़ी ने झट देख लो जी कोई, थी थाँ का वीराजी का बाग
अरज सुणों, किरपा करो जी कोई, दुखियारी पे आज
अरे कोई देई दो रे
म्हने दो पल पॉंखा उधारी
म्हूँ देखी अऊँ वीरा की अटारी
उड़ी उड़ी ने झट देख लो जी कोई, थी थाँ का वीराजी का बाग
अरज सुणों, किरपा करो जी कोई, दुखियारी पे आज
अरे कोई देई दो रे
म्हने दो पल पॉंखा उधारी
म्हूँ देखी अऊँ वीरा की अटारी
मोड़ बंध्यो मेंहदी लगी जी कोई, मन ने काड्या दॉंत
गाजा-बाजा धूम में जी कोई, नवो-नवो व्यो साथ
एक झलक के कारणे जी कोई, तरसूँगा दन रात
असी जो पेलाँ जाणती
(तो) रेती जनम कुँवारी
याँ से दीखे कोन्ही वीरा की अटारी
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संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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