.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ।
कर्ज चुकाने को जननी का, सेवादल में आओ
बीत न जाये यू ऊमरिया, यूँ ही आलस खाते
बीत न जाये मंगल बेला, अँगड़ाते-अँगड़ाते
आजादी की सुबह हो गई, उठो! प्रभाती गाओ
कर्ज चुकाने को जननी का.....
हिरदे में हिम्मत, ललाट पर मेहनत के हों मोती
क्या कहने फिर तो, हर मुश्किल चुटकी में हल होती
चलो! पसीने के बादल, इस धरती पर बरसाओ
कर्ज चुकाने को जननी का.....
नहीं माँगती सिर या शोणित, प्यारी भारत माता
माँग रही है सिर्फ पसीना, पहले कौन बहाता?
पुरखाओं के बलिदानों की, कुछ तो रीत निभाओ
साबित कर दो आज कि हम हैं, बलिदानी सन्तानें
चलो! तिरंगे की छाया में, खुद का इतिहास बनाओ
कर्ज चुकाने को जननी का.....
‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ यहाँ पढ़िए।
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‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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