‘चटक म्हारा चम्पा’ की तेरहवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
बररवा आई रे
अमर सुहागण बेन्यॉं म्हारी
ओ रे मोटा भाई रे
झेलो म्हारी बधाई रे
अई अई रे बरखा आई रे
आई रे बरखा आई रे
नोपत ऊपर डंको लागो राणी पामणी अईरी है
भाई भायला सखी सहेल्याँ सब ने लारे लईरी है
डूँगर ऊपर डेरा न्हाक्या चालो वधई ने लावाँ रे
झाँझ बजावो मिरदंग लावो कजरी ने ददरी गावाँ रे
अणी कजरी पर बलिहारी
अणी ददरी पर जऊँ वारी
जणने हुणवा ओ
जणने गुणवा ओ
सोला अठवाड्या अद्धर में
इन्द्र धनुष का रंग छाजा पर अद्भुत सभा जुडाई रे
आई रे बरखा आई रे
घरती माँ की लीली चूनर ऊन्हारा में कुम्लई गी
तपी रोहिणी तपी-तपी ने छत्तॉं पाणी तरसई गी
ओ रे तरसा मोर मोरनी ओ
ओ रे तरसा मोर मोरनी ओ काँकड का रखवारा
तपत मिटईलो तरस बुझईलो मेवला करी र॒या मनवारॉं
अणी तपत पर बलिहारी
अणी तरस पर जऊँ वारी
जणै मिटावा ओ
जणे बुझावा ओ
जणै मिटावा जणे बुझावा
भर॒या जेठ का अंगीरा पर
अरब समन्दर की कामणियॉं माथे ममणा लाई रे
आई रे बरखा आई रे
आगे आगे गऊ का जाया पाछे धणी-धराणी ओ राम
ऊँचा चौडा ललवट ऊपर मेहनत की सेनाणी ओ राम
गज-गज चौडी छाती बारो रे
गज-गज चौडी छाती वारो मरद मालवी ललकारे
ऊपर ही ऊपर अई गरजे घरती पर तो अईजा रे
अणी धणी पर बलिहारी
अणी जणी पर जऊँ वारी
जणे हरावा हो
जणे डरावा ओ
जणे हरावा जणे डरपावा
पग पटकी री भूखी बिजली
दिग्गज आपो खोई गरजी र॒या दसी दिशा कम्पाई रे
आई रे बरखा आई रे
आँबा भई का अजब गोखडा हूना हुना वेईग्या रे भई
मन की वाताँ केती-केती कोयल बई परदेसाँ गई
झॉंझार्डा में बाप बापडो ओ
झॉंझार्डा में बाप बापडो भरी दुपेराँ कूटईग्यो
बेटी कईगी देस पिया के दाऊजी को घर लूटईग्यो
अणी बेटी पर बलिहारी
अणा दाऊजो पर जऊँ वारी
जणी बेटी ने रोई-रोई ने
जणी बेटी ने रोई-रोई ने जणा दाऊजी ने खोई-खोई ने
सावण भादों की झडियाँ में
कतरी ही बिछड़ी बेट्यां का मन की आस पुराई रे
आई रे बरखा आई रे
अई रे बादरी भागी-भागी भरी-भरी कामणगारी
पाछे को पाछे आयो रे बादरो ढब ऐ ढब दारी नखरारी
यें ती अईग्यो रथ इन्दर को ओ
यें ती अईग्यो रथ इन्दर को अबे मची खेंचाताणी
लाड करे इन्दर नाचण का राड़ करी री इन्द्राणी
अणी राड़ पर बलिहारी
अणा लाड़ पर जऊ वारी
जणी राड़ में गरजी ने
जणा लाड़ में बरसी ने
राड़ राड़ में गरजी ने भई लाड़-लाड़ में बरसीने
एक बरस का अम्मर तरसा
सग्मुण पपैया की स्वाती में तीखी तरस बुझाई रे
आईं रे बरखा आई रे
घरऊ बादरी उठी अधर में पणघट ऊपर छईगी ओ राम
भर्यो बेवड़ो कूण तोकावे पणिहारी घबरईगी ओ राम
लेंहगा लुगड़ा ती लपटाणी ओ
लेंहगा लुगड़ा ती लपटाणी आतमणा की पवन परी
तो बालपणा का बिछड़या बालम माथे मेली ओ राम चरी
अणी सजन पर बलिहारी
अणी सजनी पर जऊँ वारी
जणे मिलावा ओ
जणे हँसावा ओ
जणे मिलावा जणे हँसावा
पनघट का चिकणा पंगत्या पर
पवन परी ने लोक लाज की लछमण रेख मिटाई रे
आईं रे बरखा आई रे
झरमर-झरमर मेवलो बरसे, डीले छेंटे गुलसाड़ी
म्हारा भोरा ढारा साजनियाँ थी बेगी हाँको न्ही गाड़ी
अणी पंथ पर आता जाता ओ
अणी पंथ पर आता जाता (कोई) म्हाके नजर लगई देगा
चतर पड़ौसी थाँ की मेड़ पर अपणा बेल चरई लेगा
अणी चतर पर बलिहारी
अणी भोरा पर जऊँ वारी
जणे भणावा ओ
जणे बतावा ओ
जणे भगावा जणे बतावा
अणबोल्या अलबेल्या बलद्या
लाख चामका खाया फेर भी गाड़ी नही रड़काई रे
आई रे बरखा आई रे
नवा देस का मस्त मजूरां ओ रे धरती का राजा
निर्धनता ती जुद्ध लड़ी लो बाजी ग्या रण का बाजा
थाँ की हुड्याँ सिकरावेगा ओ
थाँ की हुड्याँ सिकरावेगा सेठ सराफ बजाराँ में
धणी-रणी दोई सबर राखजो निपजे नीलम गारा में
अणी करज पर बलिहारी
अणी फरज पर जऊँ वारी
जणे चुकावा ओ
जणे निभावा ओ
जणे चुकावा जणे निभावा
वगर लगन और वगर मुहरत
रत्नाकर ने राजल बेट्याँ इन्दर ती परणाई रे
आई रे बरखा आई रे
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संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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