यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
रियाज
मैंने नहीं छोड़ा गाने का रियाज
तो आज भी ठीक है मेरी आवाज
वे न जाने कब से
न जाने कब तक
न जाने क्यों
गा नहीं पाये
तो सबको भर्राया लग रहा है
उनका गाना
कल उन पर रो रहा था
आज उन पर हँस रहा है जमाना!
जो किसी मौसम विशेष में
हवा का रुख देख कर गायेंगे
वे कल बेसुरे थे
आज भर्रा रहे हैं
कल और अधिक ऊलजलूल हो जायेंगे!
हवा की गन्ध से अधिक प्राणवती होती है
मिट्टी की गन्ध
उससे क्यों नहीं लेते अपने छन्द?
मिट्टी से जुड़ कर नहीं
मिट्टी में मिल कर गाओ
मैं झेल लूँगा तुम्हारी टेर
तम सुर तो लगाओ!
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तो आज भी ठीक है मेरी आवाज
वे न जाने कब से
न जाने कब तक
न जाने क्यों
गा नहीं पाये
तो सबको भर्राया लग रहा है
उनका गाना
कल उन पर रो रहा था
आज उन पर हँस रहा है जमाना!
जो किसी मौसम विशेष में
हवा का रुख देख कर गायेंगे
वे कल बेसुरे थे
आज भर्रा रहे हैं
कल और अधिक ऊलजलूल हो जायेंगे!
हवा की गन्ध से अधिक प्राणवती होती है
मिट्टी की गन्ध
उससे क्यों नहीं लेते अपने छन्द?
मिट्टी से जुड़ कर नहीं
मिट्टी में मिल कर गाओ
मैं झेल लूँगा तुम्हारी टेर
तम सुर तो लगाओ!
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
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