‘चटक म्हारा चम्पा’ की दूसरी कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
चम्पा ती
चटख म्हारा चम्पा आई रे ऋतु थारी
आई रे ऋतु थारी
आई रे ऋतु थारी
चटक म्हारा चम्पा आई रे ऋतु थारी
फगुनईगी रे क्यारी क्यारी
जुबनईगी कलियाँ कचनारी
रंग रस रुप का मधु मेरा में
तरसी तरसी चाँदनी ने पालकी उतारी
चटख म्हारा चंपला आई रे ऋतु थारी
शरद पूनम को चन्दो चट्ख्यो, मझरी माझल रात
धरती पर वखरीगी गगन की, छलल्ला भरी परात
किरण किस्योराँ ताना मारे, कर-कर लम्बा हाथ
सोवे कमल जगावे कमली
रोई-रोई रात काटे चकवी बिचारी
चटख म्हारा चंपा आई रे ऋतु थारी
परिमल नही द्यो परमेसर ने, यो भी सुख कई कम है
जण में बिरहा को सुख कोन्ही, व्हा भी कई पूनम है
पीड़ा नाचण के बिन सूनी, जीवन की जाजम है
पाँखड़ियाँ की जाजम पाथर
तो आखी ऊमर नाचेगा छबीली छनगारी
चटख म्हारा चम्पा आई रे ऋतु थारी
भूखा भँवरा न्ही भीजे तो, मनड़ो मत कर छोटो
तरसी तितल्याँ न्हीं रीझे तो, कई माने तू खोटो
भूखा भरमार भरी है, तरसा को कई टोटो
बन्ध तुड़ई ने गन्ध उड़ई दे
तो लप-लप करती लपटेगा नागणिया नखरारी
चटख म्हारा चम्पा आई रे ऋतु थारी
सोना-रूपा की पाँखड़ियां, नख लागे कुम्हलाय
मीठी गन्ध उड़े तो दुनियाँँ, अध वेंडी वेई जाय
यूँ मत सोच जनम यो थारो, कई अरथे नही आय
कोई बिरहण तो चूँँटेगा ही
साजनियाँ की सेजाँ पे पूजेगा कामणगारी
चटख म्हारा चंपा आई रे ऋतु थारी
मुरझाणों तो है ही रे वेंडा, मुसकई ने मुरझाव
दूध-पतासा का ढोल ढुरीग्या, कई तो तरस बुझाव
रंग रस र्प का मधु मेरा में, मन चावे उई गाव
थारी छाया में छाने-छाने
छलिया ने छबीली देईरी लौंग सुपारी
चटख म्हारा चम्पा आई रे ऋतु थारी
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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