.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ।
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा
जो भी कोई गीत हमारे गायेगा
उससे हमारा कौल है ये
बोल बड़ा अनमोल है ये
पीछे-पीछे उसके जमाना आयेगा
गीत उसके भी जमाना गायेगा
हम हैं सिपहिया सेवादल के
बहिना औ’ भैया सेवादल के
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा.....
जलता है सूरज, जलने दो
गलता है चन्दा गलने दो
कुदरत अपना काम करे
तुम भी कुदाली चलने दो
छोड़ो आलस, काम करो
नहीं जवानी बदनाम करो
अभी जो पसीना निछरायेगा
रानी माँ का राजा बेटा कहलायेगा
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा.....
पड़ती है बिजली, पड़ने दो
गड़ते हैं काँटे, गड़ने दो
जूझ चलो हर मुश्किल से
तुम मत पाँव उखड़ने दो
अपना चमन सम्हालो तुम
फागुन नया बुला लो तुम
जो फागुन सेवादल लायेगा
वो फिर वापस क्या जायेगा
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा.....
बकता है कोई, बकने दो
तकता है कोई, तकने दो
आदर्शों के उपवन में
सेवा के फल पकने दो
अपवादों से डरना क्या
अब पीछे पग धरना क्या
आज जो जमाने को ठुकरायेगा
कल वो ही घर-घर पूजा जायेगा
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा.....
चलो-चलो देश बनायेंगे नया
चलो-चलो रंग जमायेंगे नया
बासी-बासी बातें रहने दो
चलो-चलो सूर्य उगायेंगे नया
नई-नई राह बनाते चलो
नये-नये गीत गुँजाते चलो
जो भी कोई अब पीछे रह जायेगा
मानो या न मानो पर पछतायेगा
जो भी कोई साथ हमारे आयेगा.....
‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँयहाँ पढ़िए।
‘गौरव गीत’ का सत्रहवाँ गीत ‘ज्योति जले’ यहाँ पढ़िए
‘गौरव गीत’ का उन्नीसवाँ गीत ‘मत घबराओ’ यहाँ पढ़िए
‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
‘वंशज का वक्तव्य’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिल
‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.