विश्रामगृह

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की छब्बीसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।



विश्रामगृह

तुम अपने आपको
आदमी समझने की खुशफहमी में
व्यर्थ जी रहे हो
वस्तुतः तुम
व्यवस्था के विश्रामगृह हो
व्यक्ति नहीं!
बदलती व्यवस्था के साथ तुम.
अपनी दीवारों कीे सजावट
पलस्तर सहित बदलने में पटु हो गये हो ।
व्यवस्था के वहशियों के चित्र
सजाकर टाँगना और उन्हें पूजना
तुम्हारा धर्म ही नहीं, संस्कार भी है।
तुम्हारी मानसिक बैरागिरी की टिप
कोई छोटा-मोटा पद या नॉन गजेटेड नौकरी
या अधिकाधिक एक-आध प्याला चाय या कॉफी।
व्यवस्था के बूटों से बालों तक
पॉलिश या मालिश करने में
तुमने अपनी क्रान्तिकारी कलमों को
कितना दूर फेंक दिया है!
तुम लाख कहो कि तुम्हारा क्रान्तिकारी
सोया नहीं, जाग रहा है,
पर सत्य यह है कि
क्रान्तिकारी विश्रामगृहों में नही
खुले आसमान के नीचे
किसी खलिहान में ढेले का सिरहाना लगाकर
सोते नहीं
क्रान्ति को पदचाप देते हैं।
तुम्हारे भीतर जो जाग रहा है न,
वह कोई शाह या नौकरशाह हो सकता है।
चुपचाप बाथरूम में जाकर आईना देखो
मेरी बात सच निकलेगी।
अनुशासित अवज्ञा
आत्मप्रेरित अविनय
और अटूट मनोबल
आँधी की तरह उठते हैं,
तब क्रान्तियाँ कोख से फूटती हैं।
तुम्हारे क्षितिज नपुंसक
दिशाएँ बाँझ
और आन्दोलन निर्वीर्य हैं
भविष्य तुम्हारी बहस का विषय नहीं है!.
तुम्हें पुलिस, सेना या नेता
कोई भी रास्ते पर लगा सकता है
मेरे पास ये तीनों हैं।
तुम्हें क्रान्ति की नहीं, भ्रान्ति की प्रतीक्षा है
वाकई तुम भ्रान्ति की सन्तान हो
क्रान्ति की नहीं।
तुमने अपने चरित्र, चिन्तन और चालचलन से
यह सिद्ध कर दिया है कि तुम
व्यक्ति नहीं, व्यवस्था के विश्रामगृह हो।
हाँ,
जिसे डाक बँगला भी कहा जाता हैं
जिसमें टिप देकर या टिप लेकर भी रहा जाता है
जिसमें भविष्य नहीं, वर्तमान जीता है
जो आदत के अनुसार चाय या व्हिस्की पीता है।
चलो बिस्तर की चादर बदलो
आज की रात मुझे तुममें आराम करना है
जनसम्पर्क पर आनेवाली व्यवस्था का
माकूल इन्‍तजाम करना है।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053 




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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