सुझाव

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की बाईसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।




सुझाव

जटिलतम जिन्दगी को तुम
सरलता से लो तो सही
मेरी बात पर नहीं तो
अपने ही आईने पर
ध्यान दो तो सही।
जटिलता
कोई अंगद का चरण नहीं है
न ही तुम हो कोई रावण
कहाँ चुराई है तुमने कोई सीता?
फिर यह जटिलता-जटिलता
कथन मात्र है
तुम्हारे निराश क्षणों का।
महायोग मत लगाओ
अपने घावों का, व्रणों का।
रिसने दो उन्हें
अविरल बहने दो।
राह के रोड़ों से
तन के पसीने को
मन के संकल्पों को
‘राम-राम’ कहने दो ।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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