वाजे रे ढोल

 
श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की तीसरी कविता

यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।




वाजे रे ढोल

ढमक-ढमक वाजे रे ढोल
मीठा-मीठा लागे रे बोल
खोल पिया नैण खोल
ऊषा वखेरे गुलाल रे
कमलाँ का नाथ आया
भर-भर ने बाथ लाया
किरणाँ का कामणगारा जाल रे
रसीला नैण खोल
वाजे रे ढोल

पंछीड़ा जाग्या रे जाग्या
जागतँं हो गावा लाग्या
गोरा-गोरा गीत परभात का
गायाँ का पूत जग्या
मेहनत का दूत जग्या
जोगीड़ा जाग्या जमात का
तो म्हारा सुहाग रे
तू भी तो जाग रे
राता-राता करदे म्हारा गाल रे
ऊषा वखेरे गुलाल रे 
छबीला नैण खोल
हठीला नैण खोल
वाजे रे ढोल

भाग फाटी व्यो परोड़ो
सेजाँ की मौज छोड़ो
आकरड़ो व्याँ जईर्यो तावड़ो
पूरो पड़ोस जाग्यो
लेईने नवो हौंस जाग्यो
जागी ग्यो एक-एक गामड़ो
पुरबज जुझारू थारा
मेटीग्या जग अँधारा
धक-धक धकईग्या मशाल रे
ऊषा वखेरे गुलाल रे
हठीला नैण खोल 
बदीला नैण खोल
वाजे रे ढोल

खेत थारा पाका-पाका
चौड़े धाले न्हाकी ने डाका
पंछीड़ा चुगी-चुगी जाय रे
तू जो नहीं आज जगे
ऊमर पर द्वाग लगे
यूँ कई बगासी कराय रे
रोर वे है जाग रे
म्हारा सुहाग रे
तू गोफण ने भाटा सम्हाल रे
ऊषा वखेरे गुलाल रे
हठीला नैण खोल 
नसीला नैण खोल
वाजे रे ढोल

काँधा पे बोझ आयो
यो तो रोज-रोज आयो
कामचोर यूँ मत केवाव रे
रातड़ली आँख खोल
बोल-बोल नवा बोल
जागरण का गीत तू भी गाव रे
आलस को कण्ठ काट
हमजोली जोवे रे वाट
जामण ने करदे निहाल रे
ऊषा वखेरे गुलाल रे
रसीला नैण खोल 
कँटीला नैण खोल
वाजे रे ढोल

मूछाँ मरोड़ पिया
अबे मती ओढ़ पिया
जोड़ूँ हूँ हाथ थारा जाग रे
पगे दू रे पाँवड़ा
सासू का डावड़ा
लाजे है म्हारो सुहाग रे
हिवड़ा का हार जाग
सेज का सिंगार जाग
बिलखे है आरती को थाल रे
ऊषा वखेरे गुलाल रे
हठीला नैण खोल 
कँटीला नैण खोल
वाजे रे ढोल
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन






यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।  ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।  रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।














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