यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
हम जो तेरे साथ हैं
हम जो तेरे साथ हैं, हाथ में मशाल है
मेरे देश, प्यारे देश
बढ़ता चला चल तू अपनी राह पर
तेरी कसम हमने अँधेरे की आँख खोल दी
देख ले बदल दी हमने रंगतें भूगोल की
आज तेरे और हमारे हौसले कमाल हैं
मेरे देश, प्यारे देश
हम निराले बागबाँ हैं बियाबान के
फिर अमीरे कारवाँ हैं हम जहान के
तेरी कसम हमसे ये जहाँ निहाल है
मेरे देश, प्यारे देश
बढ़ते चले जा रहे हैं काफिलों के काफिले
कर रहे हैं सर सुहानी मंज़िलों पे मंजिले
कूच कदम और सितारे बेमिसाल हैं
मेरे देश, प्यारे देश
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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