यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
गाँधी के सन्देसे को
गाँधी के सन्देसे को, घर-घर में सुना देंगे
हर दिल में अहिंसा की, एक ज्योति जगा देंगे
हाथों में तिरंगा ले मजदूर किसानों का
जाँ-बाज शहीदों का, बेखौफ जवानों का
बैलों के रखैया को, सोये से जगा देगें
गाँधी के सन्देसे का.....
बन्दा जो अमन का है, धरती का सितारा है
भारत का सहारा जो, मोती का दुलारा है
नेहरू के पसीने पर, हम खून बहा देंगें
गाँधी के सन्देसे को.....
हम सब के ही साथी हैं, सब भाई हमारे हैं
भारत की बुलन्दी से, कुछ रश्क के मारे हैं
दुश्मन जो हमारे हैं, हम उनको मिटा देगें
गाँधी के सन्देसे को.....
इन्साँ को गुलामी में, मत जकड़ो जहाँ वालों
हँस-हँस के जियो, सबको जीने दो, जहाँ वालों
ऐटम के अंगारों को हम फूल बना देगें
गाँधी के सन्देसे को.....
दुःख-दर्द भरी दुनिया, आँसू न बहाना तू
हम आते हैं इक पल में, हिम्मत न गँवाना तू
पत्थर के दिलों को भी, हम प्यार सिखा देंगे
गाँधी के सन्देसे को.....
-----
जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.