यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।
शायद
शायद
पोर-पोर में कसकन जागी, शायद मौसम बदल गया है
बरबस बदल गया बैरागी, शायद मौसम बदल गया है।
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अभी-अभी तो समझाया था, मैंने एक अलख भोगी को
लोरी गाकर सुला दिया था, जैसे-तैसे इस रोगी को
उसने फिर से रोटी माँगी, शायद मौसम बदल गया है।
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नस-नस के नखरे तो देखो, जैसे सारी रात जगी हो
शिरा-शिरा में होता है कुछ, जैसे कोई आग लगी हो
फूल-पात तक हो गये बागी, शायद मौसम बदल गया है।
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कल तक था जो हेम-हिमानी, उस अम्बर की नीयत बदली
नीयत क्या बदली, लगता है, उसने कहीं वसीयत बदली
देने लगा सुधा अनमाँगी, शायद मौसम बदल गया है।
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मन करता है गाते जाओ, गाते जाओ, गाते जाओ
आसमान में सरगम भर दो फिर-फिर टीप लगाते जाओ
जाग गया पंचम अनुरागी, शायद मौसम बदल गया है।
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फागुन की धज के क्या कहने, जंगल-जंगल आग लगा दी
अमिया से रस बतियाँ करके, मंजरियों की भूख जगा दी
पानी माँग गये बैरागी, शायद मौसम बदल गया है।
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मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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