यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।
हे देव!
हे देव!
हे देव! मुझ को शक्ति दो
श्रेष्ठता अपनी नहीं थोपूँ
किसी पर
हूँ अगर मैं श्रेष्ठ तो
अतिश्रेष्ठ होकर भी दिखाऊँ
है किसे फुरसत
सुने उपदेश मेरा
और जीवन में उतारे
है किसे अवकाश
जो दे कान मुझ पर
और मुझको श्रेष्ठ माने
या पुकारे
अति अनर्गल हो गया हूँ
व्यर्थ होने की दिशा में
बढ़ गया कितना क्षितिज तक?
सोचता हूँ
अब जरा निर्णय नया लूँ
और वापस लौट जाऊँ।
श्रेष्ठता अपनी नहीं थोपूँ किसी पर
हूँ अगर मैं श्रेष्ठ तो
अतिश्रेष्ठ होकर भी दिखाऊँ।
हे देव! मुझको शक्ति दो।
राम जाने, है जगत वह कौन-सा
जो मुझे मन से जगद्गुरु मानता हो
क्षुद्र हूँ इतना कि
तब भी दम्भ करता हूँ निरन्तर
तथ्य शायद यह
न कोई जानता हो।
मन समझता है कि
सच्ची बात क्या है?
जानता है आत्मन्
आघात क्या है?
सोचता हूँ
चढ़ किसी उत्तुंग पर
तथ्य यह सबको बताऊँ।
श्रेष्ठता अपनी नहीं थोपूँ किसी पर
हूँ अगर मैं श्रेष्ठ तो
अतिश्रेष्ठ होकर भी दिखाऊँ।
है देव! मुझको शक्ति दो।
श्रेष्ठा की डींग ने
इस दम्भ ने
कर दिया कितना पतित
अब क्या कहूँ
प्राण पर लेकर वजन पाखण्ड का
किस तरह संसार में
जीवित रहूँ?
रात दिन होकर निरर्थक रीतना
हारते रहना किसी अज्ञात से
और इसको ही समझना जीतना
सोचता हूँ
देवता की देहरी पर
देह कर अर्पण
स्वयं का ऋण चुकाऊँ।
श्रेष्ठा अपनी नहीं थोपूँ किसी पर
हूँ अगर मैं श्रेष्ठ तो
अतिश्रेष्ठ होकर भी दिखाऊँ।
हे देव! मुझको शक्ति दो।
बस यही आसक्ति दो।
-----
संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.