चाहे सुनो, मत सुनो



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की पहली कविता 





चाहे सुनो, मत सुनो

न यह उजाला है
न उजाले का आरम्भ
यह है आदमखोर अन्धी गुफा की ओर
जानेवाली पगडण्डी का प्रारम्भ।

यही पगडण्डी आगे पसरती-पसरती
हो जाएगी राजमार्ग
और आँख मूँद कर उस पर चलनेवाले हम
मासूम मुसाफिरों को
करना होगा एक और संघर्ष
उस संघर्ष में पहला स्पर्श है
मेरा स्वर।

चाहे सुनो, मत सुनो
चाहे कितना ही जलो-भुनो
बेशक दे दो मुझे देश निकाला
बना दो बनवासी
पर मैं कह रहा हूँ
और पूरे मनोबल से कह रहा हूँ
उस पगडण्डी के निर्माता
उस प्रथम पदाघात की
प्रामाणिकता को परखो
पढ़ो तो सही उसकी रेखाओं का गणित।

कहीं ऐसा तो नहीं कि
अँधेरा, अँधेरे से गुणित हो गया हो?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि
तुम्हारा सूर्य-संकल्प
नारों और आश्वासनों की
अँधेरी घाटियों में
बौरा कर सो गया हो?

इसलिए चौकन्ने होकर चलते रहो
जब तक नहीं मिल जाये
उजास का उद्गम
तब तक खुद को ही सूरज समझो
और ज्योति-पुंज की तरह जलते रहो।

न यह उजाला है
न उजाले का आरम्भ
यह है 
आदमखोर अन्धी गुफा की तरफ
जानेवाली पगडण्डी का प्रारम्भ।
-----






संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
-----






यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।  ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

                                                                                       

रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 

















No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.