बसन्‍त को स्वागत

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
चटक म्हारा चम्पा’ की चौंतीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।








बसन्‍त को स्वागत

लाग्‍या फेर पर्‌याँ का मेरा, फेर मजीरा बोलवा
किरणाँ पाणी में केसरड़ी, लागी पाछी घोरवा
व्हे ने व्हे आयो बसन्‍त

या गन्‍ध फेर छावा लगी
फूलाँ का सन्‍देसा मादक हवा फेर लावा लगी
पत्ती-पत्ती वे मतवारी, लगी मस्त वे झूमवा
तो थी जावो म्हारा गीत जगत में घूमवा

म्हारे जसा मिले जतरा भी
थी सबको वन्दन करो
ऋतुराजा की पटराणी को जावो अभिनन्दन करो
बराबरी का सब फूलाँ ने आदर दो
सत्कार दो
पर कली मिली जा कोई काची तो
जतरो माँगे प्यार दो

(मूल कवि हेनरिक हाईने, जरमनी का युवा रोमान्टिक कवि)

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‘चटक म्हारा चम्पा’ की पैंतीसवीं कविता ‘कागला की कुचमात’ यहाँ पढ़िए







संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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