यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
आमन्त्रण
ऐटम से अब अमन जुटा कर, श्रापों को कर लें वरदान
इसीलिये देता आमन्त्रण, तुमको मेरा हिन्दुस्तान
आओ मिलकर बैठें, सोचें, समझें जरा विचार करें
कैसे इस जलती धरती का, फिर से नया सिंगार करें
बन्द करें बारूद बेचना, शुरु नया व्यापार करें
भौगोलिक सीमा के बाहर, भी हम सबको प्यार करें
ममता जागे, समता जागे, पूजा जावे फिर इन्सान
इसीलिये देता आमन्त्रण तुमको मेरा हिन्दुस्तान
एक धरा पर सभी देश हैं, सबमें हैं मानव रहते
सभी एक अदृश्य शक्ति को, पिता, प्रभु कुछ कहते
पंचतत्व के सब पुतले हैं, जन्म, मृत्यु सब सहते
फिर क्यों धरती के आँचल में, रक्त पनाले बहते?
धरती माँ सबकी माता है, सब उसकी सन्तान
इसीलिये देता आमन्त्रण, तुमको मेरा हिन्दुस्तान
बिछी हुई बारूद समेटें, आगे नहीं बिछावें
सहमी, सकुची मानवता को, भय से मुक्ति दिलावें
महानाश के रक्त कुण्ड में, जीवन-कमल खिलावें
फौजों के बाँकें युवकों से, फसलें नई ऊगावें
कब तक महानाश का कारण बना रहेगा यह विज्ञान ?
इसीलिये देता आमन्त्रण तुमको मेरा हिन्दुस्तान
नई सुबह लाने को अपने, सारे बन्धन तोड़ो
सर्वनाश में रत ताकत को, निर्माणों में मोड़ो
राग-द्वेष की भरी गगरिया, फोड़ो, जल्दी फोड़ो
अभी वक्त है अमन-चमन से, मन के नाते जोड़ो
माँग रहा है हमसे जीवन, मरता-मरता यह इन्सान
इसीलिये देता आमन्त्रण तुमको मेरा हिन्दुस्तान
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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