यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
हम भारत माँ के पूत
हम भारत माँ के पूत, अमन के दूत, जमाने वालों
हम गायें अमन के गीत, लुटायें प्रीत, जमाने वालों
हिन्द चीन में जहाँ लगे थे, लाशों के अम्बार
लगे कोरिया की गलियों में, कफनों के बाजार
हम गाते गये मल्हार, ले आये बहार, जमाने वालों
हम भारत माँ के पूत
रण का प्यासा मूरख मानव जब-जब करता चोट
लेती है तब सारी दुनिया, मेरी माँ की ओट
मेरा चचा जवाहरलाल, तुम्हारी ढाल, जमाने वालों
हम भारत माँ के पूत
दो सदियों तक जिस धरती पर, उगे कफन के खेत
नव-जीवन का पाठ पढ़ाती, आज वहाँ की रेत
हम बुझा रहे शमशान, हमें अभिमान, जमाने वालों
हम भारत माँ के पूत
यहाँ अहिंसा देती जग को, जीने का विश्वास
पंचशील की धरती लिखती, नवयुग का इतिहास
हम बलिदानी सन्तान, करें निर्माण, जमाने वालों
हम भारत माँ के पूत
सुजला-सुफला भारत माँ के, कोटि-कोटि बलवीर
लिखें तिरंगें की छाया में, दुनिया की तक़दीर
हम धरती के वरदान, युगों की शान, जमाने वालों,
हम भारत माँ के पूत
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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