श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की तीसरी कविता
अलख अनिवार्य
‘शीलवती आग’ की तीसरी कविता
अलख अनिवार्य
निस्सीम अनन्त नहीं कोई
हर एक बँधा मर्यादा में
जिसको अबाध हम कहते
वह स्वयं बद्ध है बाधा में।
धरती हो चाहे अम्बर हो
हो पवन या कि हो अनिल, अनल
सबकी अपनी एक सीमा है
सीमान्त सभी का परम प्रबल।
कुछ भाग्यबद्ध कुछ कर्मबद्ध
कुछ बँधे हुए पर्यायों से
सब काट रहे अपने बन्धन
अनजाने अगम उपायों से।
जब-जब भी टूटी मर्यादा
तब-तब ही समझो ध्वंस हुआ
तम-तोम टूट कर पसर पड़ा
आरम्भ अनय का अंश हुआ।
जड़ चेतन सब मर्यादित हैं
हर अणु में वह आभासित है
पर वह अगम अगोचर परमपिता तक
मर्यादा से शासित है।
-----
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.