वे इस समय अपनी उम्र के सित्यासीवें बरस में चल रहे हैं। चुस्त-दुरूस्त। रोज चार-छः किलोमीटर पैदल चल लेते हैं। लोक जीवन के गहन जानकार और अनुभव-सम्पदा के छोटे-मोटे कुबेर। आते ही बोले - ‘तुम पूछो उससे पहले मैं ही कह देता हूँ। तीन बजे की घर की चाय छोड़ कर आया हूँ कि तुम्हारे यहाँ चाय पीयूँगा। ग्रीन टी। घर में न हो तो अपना टी बेग साथ लाया हूँ। बहू को चाय बनाने के लिए कहो और तुम सारे काम छोड़ कर मेरे पास बैठो। कुछ बातें करनी हैं।’ उनका आना किसी तीर्थ का आना होता। उत्तमार्द्धजी को चाय के लिए कहकर उनके पास बैठ गया। उन्होंने बात शुरु की-
‘आज राष्ट्रपतिजी की शपथ हो गई। तुमने देखा?’
‘नहीं। इन दिनों मैं टीवी, अखबार से दूर हूँ।’
‘कोई बात नहीं। लेकिन आज की खास बात नोट की?’
‘कौन सी?’
‘आज अमावस के बाद की दूज है।’
‘तो?’
‘अरे! कुछ याद नहीं आया?’
‘नहीं।’
‘तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। तुम्हें वो मालवी कहावत याद नहीं आई जिसमें कोई मुहूरत देखे बिना काम कर लेने की सलाह दी है?’
‘नहीं। अभी भी याद नहीं आ रही।’
‘हद है! उम्र मेरी ज्यादा है लेकिन बूढ़े तुम हो। याददाश्त साथ छोड़ने लगी है तुम्हारी।’
‘जी। हो सकता है। आप ही बता दीजिए।’
‘तो सुनो,
पूनम की पड़वा भली, अम्मावस की बीज।
बिन देख्या मोरत भला, के तीरस के तीज।।’
‘अरे! हाँ। याद आ गई। तो?’
‘देखो! अपने सारे नेता कितने ही गरजें-बरसें लेकिन सबके सब डरपोक, शक्की और अन्ध विश्वासी हैं। वैज्ञानिक उपलब्धियों के उद्घाटन करते हैं, इन्हें अपने खाते मे जमा करते हैं, खुद भी इन गर्व करते हैं और लोगों से भी गर्व करने को कहते हैं लेकिन कुर्सी पर बने रहने के लिए यज्ञ-हवन, तन्त्र-मन्त्र कराते हैं। लोगों की आँख बचाकर ज्योतिषियों के सामने हथेलिया फैलाते हैं, अपनी जन्म-कुण्डलियॉं बँचवाते हैं।’
‘हाँ। तो?’
‘तो यह कि शपथ समारोह के लिए मोदी एण्ड कम्पनी ने ज्योतिषियों से सलाह ली ही होगी और महूरत भी निकलवाया होगा। लेकिन अमावास के बाद की बीज का संयोग अनायास ही बन गया। लोगों को अच्छा लगा होगा। लेकिन इसके साथ ही एक नई स्थिति बन गई है। उसी पर बात करने तुम्हारे पास आया हूँ।’
‘कैसी स्थिति?’
‘देखो! राष्ट्रपति देश की तीनों सेनाओं का सर्वाेच्च सेनापति होता है। वह युद्ध की भी घोषणा कर सकता है और युद्ध विराम की भी।’
‘हाँ। तो?’
‘आज की हालत देखो! युद्ध की हालत बनी हुई है। अखबारों और टेलीविजनों में युद्ध ही युद्ध छाया हुआ है। हर कोई डर रहा है, कहीं युद्ध शुरु न हो जाए। तुम नहीं डर रहे?’
‘हाँ। डर तो रहा हूँ।’
‘गए तीन बरसों से युद्ध की भूमिका बनी हुई है। बात कश्मीर की हो या चीन-पाकिस्तान की। हम कहीं भी सुखी नहीं हैं।’
‘हाँ। वो तो पहले से ही नजर आ रहा है।’
‘आतंकवादियों और नक्सलवादियों के खिलाफ हमने सेना को खुली छूट तो दे रखी है। लेकिन हो क्या रहा है? उनके तो आतंकवादी मर रहे हैं लेकिन हमारे तो जवान मर रहे हैं! हम या तो नुकसान बर्दाश्त कर रहे हैं या नुकसान टाल रहे हैं।’
‘हाँ। ये बात तो है।’
‘एक बात और। स्पष्ट बहुमत के चलते सरकार संसद में जरूर मजबूत है लेकिन यह बहुत कमजोर सरकार है। सब कुछ एक आदमी, मोदी पर टिका हुआ है। बाकी किसी का नाम सुनने को नहीं मिलता। राजनाथ सिंह, वैंकेया नायडू और सुषमा स्वराज के नाम सुनने को मिल जाते हैं लेकिन वैंकेया अब मन्त्रि मण्डल से बाहर हैं, राजनाथ नपा-तुला बोल पा रहे हैं और सुषमा तो उनचालीस लापता भारतीयों के बारे में गलतबयानी के आरोपों मे घिरी बैठी है। याने जो भी है, बस! मोदी है।’
‘ये सब तो ठीक है लेकिन मैं आपकी बात अब तक नहीं समझ पा रहा हूँ।’
‘जानता हूँ। अपनी बात ही समझा रहा हूँ। देखो! हम कितने ही दावे करें और चीन कितना ही गरजे लेकिन कोई भी युद्ध नहीं चाहता।’
‘वो तो है। भारत-चीन ही क्यों? दुनिया का कोई भी आदमी युद्ध नहीं चाहता।’
‘वही। लेकिन हकीकत क्या है? अपनी मोदी सरकार ले-दे कर राष्ट्रवाद के नारे पर टिकी हुई है। लोगों में फैला यह भावोन्माद ही इस सरकार की सबसे बड़ी ताकत है और युद्ध की आशंका का मौजूदा माहौल इसमें संजीवनी का काम कर रहा है। तुम्हें परसाई की वह बात याद नहीं आ रही जिसमें उन्होंने राष्ट्रवाद को कायरों की शरणगाह कहा था? सीएजी कह रहा है कि हमारी सेनाओं के पास दस दिनों का ही गोला-बारूद है जबकि कम से कम चालीस दिनों का होना चाहिए। धनुष तोपों में कमजोर चीनी पुरजे लगाने का भ्रष्टाचार सामने आया है। लेकिन हमारे प्रधान मन्त्री कुछ नहीं बोल रहे। वे कुछ बोल नहीं रहे और जो बोल रहे है, लोग उनकी बातों को बहुत हलके में लेते हैं। उन पर भरोसा नहीं करते। आज की तारीख में लोग केवल मोदी की बात पर भरोसा करते हैं। लोग सब कुछ मोदी के मुँह से सुनना चाहते हैं और मोदी हैं कि चुप हैं। मोदी के मन की मोदी जाने, मैं तो यही विश्वास करता हूँ कि मोदी भी युद्ध टालना चाहते हैं। इसीलिए चुप हैं। लेकिन जैसा कि मैंने कहा है, युद्ध की आशंका चौबीसों घण्टे बने रहना ही उनकी ऑक्सीजन है। अपनी सरकार की मजबूती से बेफिकर रहने के लिए वे पूरे देश को फिक्रमन्द ही नहीं, भयभीत बनाए रखना चाह रहे हैं। यह अच्छी बात नहीं है।’
‘आपकी बातें सुनने में अच्छी तो लग रही हैं लेकिन इस सबमें मैं क्या कर सकता हूँ?’
‘कर सकते हो। अभी तुमने देखा होगा, मध्य प्रदेश में अब ज्योतिषियों के जरिए बीमारों का ईलाज किया जाएगा। संघ के एक सज्जन ने सलाह दी है कि अपने पूजा-पाठ, नमाज के बाद लोग पाँच-पाँच बार मन्त्र पढ़ कर चीन को हराएँ। याने कि देश का भविष्य जानने के लिए हमेें अपने नेताओं के बजाय ज्योतिषियों से सम्पर्क करना चाहिए। हमारे नेता पहले से ही ज्योतिषियों पर निर्भर हैं। अभी तुमने देखा होगा, मध्य प्रदेश में अब ज्योतिषियों के जरिए बीमारों का ईलाज किया जाएगा। संघ के एक सज्जन ने सलाह दी है कि अपने पूजा-पाठ, नमाज के बाद लोग पाँच-पाँच बार मन्त्र पढ़ कर चीन को हराएँ। याने कि जब मोदी कुठ बताने, बोलने को तैयार नहीं हैं तो देश का भविष्य जानने के लिए हमेें ज्योतिषियों से सम्पर्क करना चाहिए। ऐसे में देश के ज्योतिषी समुदाय आगे आकर खुद यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वे देश को बताएँ कि देश का सर्वाेच्च सेनापति बदल जाने के बाद की स्थिति में हमारा भविष्य क्या है।’
‘चलिए! यह भी ठीक है। लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूँ।’
‘हद है यार! तुम इतने नासमझ तो लगते नहीं! अरे भई! तुम लिखने-पढ़नेवाले आदमी हो। अखबारवालों से तुम्हारी यारी-दोस्ती है। अखबारों के जरिए देश के ज्योतिषियों तक यह बात पहुँचाओ और खुद भी युद्ध के डर से मुक्त होओ और पूरे देश को भी भय मुक्त करो।’
मैं अवाक् हो गया। मुझे इसी दशा में छोड़ वे निश्चिन्त भाव से चले गए। लगभग चौबीस घण्टे हो रहे हैं इस सम्वाद को। मैं अब तक न तो समझ पा रहा हूँ और न ही तय नहीं कर पा रहा हूँ-क्या करूँ?
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(‘सुबह सवेरे’, भोपाल में 27 जुलाई 2017 को प्रकाशित)