प्रिय भाई रामकिशन यादव,
तुम्हारे लोक स्वीकृत नाम ‘बाबा रामदेव’ के गगन भेदी जयकारों से व्याप्त कोलाहल के कारण यदि तुम खुद ही अपना वास्तविक नाम भूल चुके हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यह स्वाभाविक है। ऐसा होता है। लेकिन आदमी जब वास्तविकता को विस्मृत कर दे तो उसका पराभव शुरु हो जाता है। मुझे यही डर लग रहा है और इसीलिए मैं तुम्हें वास्तविक नाम से और ‘तू-तड़ाक’ से सम्बोधित कर रहा हूँ ताकि तुम चौंको, असहज (और खिन्न, कुपित भी) होकर मेरी ओर देखो और मेरी बात सुनो।
तुम्हारे अतीत को खँगालना मेरा अभीष्ट कदापि नहीं। मैं भली प्रकार जानता हूँ कि हम अतीत की मरम्मत नहीं कर सकते। इसीलिए अपने वर्तमान को बेहतर बनाने के प्रयास करते हुए बेहतरीन भविष्य की बुनावट की जुगत में भिड़ा रहता हूँ। मैं यह भी भली प्रकार जानता हूँ कि मेरा नियन्त्रण केवल प्रयत्नों तक और मुझ तक ही सीमित है। परिणामों पर मेरा कोई नियन्त्रण नहीं है और खूब जानता हूँ कि दुनिया तो दूर रही, मेरी उत्त्मार्द्ध पर भी मेरा नियन्त्रण नहीं है। यदि वह मेरी कोई बात मान लेती है तो यह उसके संस्कार और सौजन्य ही है। ऐसे में मैं यह भ्रम बिलकुल ही नहीं पाल रहा हूँ कि तुम मेरी बात सुनोगे ही और मेरे चाहे अनुसार काम भी करोगे ही, यद्यपि मैं चाहता ऐसा ही हूँ। सो, अपनी बात कह पाना मेरे नियन्त्रण में है और मैं वही कर रहा हूँ। आगे, ईश्वरेच्छा बलीयसि।
गाँधी और जे. पी. (लोकनायक बाबू जय प्रकाश नारायण) के बाद तुम पहले आदमी हो जिसके पीछे भारत के लोग आँख मूँदकर चलने को तैयार हैं। अपनी आदर्शभरी बातों से तुमने जन मानस में आशाओं, आकांक्षाओं, अपेक्षाओं का ज्वार पैदा कर दिया है। हर किसी को लगने लगा है कि देश की समस्त समस्याओं को नहीं तो कम से कम देश को खोखला कर रहे भ्रष्टाचार को तो तुम समाप्त कर ही दोगे। तुम कर भी सकते हो। किन्तु मैं हतप्रभ और निराश हो रहा हूँ यह देखकर कि जिस रास्ते पर तुम चल पड़े हो उसका अन्तिम मुकाम सुनिश्चित असफलता है।
यह सच है कि संसदीय लोकतन्त्र के चलते केवल राजनीति के औजार से ही सारे बदलाव लाए जा सकते हैं। किन्तु इसके लिए ‘राजनीतिक’ होना जरूरी है, ‘राजनीतिज्ञ’ होना नहीं। मेरी सुनिश्चित धारणा है कि जब तक देश के तमाम लोग ‘राजनीतिक’ नहीं होंगे तब तक हमें हमारे संकटों से मुक्ति नहीं मिल सकती। किन्तु खेद है कि हमारे राजनीतिज्ञों के दुराचरण के चलते लोगों ने ‘राजनीति’ को ही दुराचारी मान लिया है और इसीलिए वे राजनीतिज्ञों को गालियाँ देने के साथ ही साथ को राजनीति को घिनौनी, हेय, और अस्पृश्य मान बैठे हैं। यह ठीक नहीं है।
इस देश में जन नेता तो कई हुए किन्तु लोक नेता दो ही हुए - पहले महात्मा गाँधी और दूसरे जे. पी.। दोनों ने वृत्तियों का विरोध किया था, व्यक्तियों का नहीं। ये दोनों ही ‘राजनीतिक’ थे, ‘राजनीतिज्ञ’ नहीं। गाँधी अंग्रेजों से नहीं, उनकी साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी मानसिकता से असहमत थे। इसीलिए असंख्य अंग्रेज भी ‘साम्राज्ञी’ के प्रति निष्ठावान रहते हुए भी गाँधी के समर्थक थे। इसी सुस्पष्ट और व्यापक चिन्तन के कारण ही अंसख्य काँग्रेसियों ने जे. पी. की आवाज में आवाज मिलाई और जेलों में रहे।
लेकिन लग रहा है कि तुम जाने-अनजाने ‘राजनीतिज्ञ’ बन रहे हो। साफ-साफ समझ लो, ‘राजनीतिज्ञ’ बनोगे तो ‘राम किशन यादव’ बन जाओगे और ‘राजनीतिक’ बनोगे तो न केवल ‘बाबा रामदेव’ बने रहोगे अपितु देश के इतिहास पुरुष भी बन जाओगे।
जो समाज अपने संकटों के लिए भाग्य और भगवान की दुहाइयाँ देता हो, वहाँ क्रान्ति नहीं आ सकती। वहाँ तो केवल अवतारों की प्रतीक्षा होती है। मैं तुममें अवतार देख रहा हूँ। लेकिन या तो तुम्हारा धैर्य चुक गया है या 'राम किशन यादव' की बुद्धि ने 'बाबा रामदेव' के विवेक को ढँक दिया है या फिर तुम भी एक बहुत ही सामान्य व्यक्ति की तरह पैसे और प्रसिद्धि को पचाने में विफल हो गए हो। तुम्हारे लिए भले ही यह हानिकारक हो या न हो, देश के लिए अत्यधिक हानिकारक है।
तुम पर सबकी नजरें गड़ी हुई हैं। और तो और, जो भाजपा आज तुम्हारे साथ खड़ी है, उसी के सांसद और पूर्व केन्द्रीय मन्त्री, हरिद्वार स्थित परमार्थ निकेतन के मुख्य ट्रस्टी स्वामी चिन्मयानन्द तुम्हें ‘आय कर चोर’ घोषित कर चुके हैं। अखबारी खबरों को सच मानें तो उत्त्राखण्ड के (भाजपाई) मुख्यमन्त्री निश्शंक पोखरियाल तुमसे मिल कर, राजनीति से दूर रहने का ‘अनुरोध’ कर चुके हैं। वामपंथी सांसद वृन्दा करात तुम पर श्रमिकों का शोषण करने और तुम्हारे कारखानों में बननेवाली दवाइयों में हड्डियाँ मिलने का आरोप लगा चुकी है। काँग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह तो मानो तुम्हारे जन्मना शत्रु ही हो गए हैं। यह सब इसलिए है क्योंकि कहीं न कहीं तुम और तुम्हारा अभियान पटरी से उतर रहा है और तुम अपने कन्धे दूसरों के लिए उपलब्ध कराते नजर आ रहे हो।
याद रखो कि लोग बोलते भले ही न हों किन्तु वे सब जानते हैं। लोगों को याद है कि 2008 में तुमने खुद ही कहा था कि तुम्हारा (तकनीकी भाषा में ‘तुम्हारे ट्रस्ट का’) कारोबार जल्दी एक लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। लोगों की जबानें भले ही बन्द हैं किन्तु आँखों में सवाल है कि 2003 में, अपने सखा बालकृष्ण के साथ, कनखल में तीन कमरों में मरीजांे का उपचार करनेवाले बाबा रामदेव ने मात्र आठ वर्षों मे करोड़ों का साम्राज्य कैसे स्थापित कर लिया? लोगों की चुप्पी में यह सवाल भी गूँज रहा है कि अपने संस्थानों के प्रबन्धन के लिए तुम्हें यादव नामधारी अपने नाते-रिश्तेदारों, भाई-भतीजों पर ही विश्वास क्यों है? ये तो गिनती की कुछ ही बातें हैं। भाई लोग अपनीवाली पर आ गए तो तुम्हारी सात पीढ़ियों की जन्म कुण्डली जग जाहिर कर देंगे और तुम्हें राम किशन यादव बनाकर ही दम लेंगे।
तुम्हें दो सूचनाएँ दे रहा हूँ। पहली सूचना यह है कि इन्दौर, भापाल, ग्वालियर और जबलपुर से प्रकाशित हो रहे एक अखबार ने कल एक सवाल पूछा था - ‘क्या रामदेव काले धन के खिलाफ अपनी मुहिम मे कामयाब होंगे?’ मैं आशा कर रहा था कि इसके उत्त्र में कम से कम नब्बे प्रतिशत लोग ‘हाँ’ कहेंगे। किन्तु मुझे निराश होना पड़ा। केवल 56 प्रतिशत लोगों ने ‘हाँ’ कहा। दूसरी सूचना यह है कि मेरे अंचल में उत्त्म स्वामी नामके एक सन्त का आना-जाना बना रहता है। उनके अनुयायियों में दिन-प्रति-दिन वृद्धि हो रही है। कल वे मेरे कस्बे में थे। पत्रकारों ने उनसे तुम्हारे बारे में पूछा तो उत्त्म स्वामी ने कहा - ‘बाबा रामदेव पर राजनीति के भाव जाग गए हैं।’ तीन लाख से भी कम की आबादीवाले मेरे कस्बे में बैठे हुए जब तुम्हारे बारे में इतनी और ऐसी जानकारियाँ उपलब्ध हैं और ऐसे मन्तव्य सामने आ रहे हैं तो मुझे कष्ट हो रहा है। क्योंकि मैं चाहता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना भी कर रहा हूँ कि तुम और तुम्हारा अभियान सफल हो।
मेरी सुनिश्चित धारणा है कि मँहगे चुनाव ही भ्रष्टाचार की गंगोत्री हैं। चुनावों के वर्तमान स्वरूप में किसी भले, ईमानदार और गरीब आदमी का जीतना तो कोसों दूर की बात रही, उसका उम्मीदवार बनना भी सम्भव नहीं रह गया है। इसलिए तुम यदि सचमुच में भ्रष्टाचार पर प्रहार करना चाहते हो तो अपना पूरा ध्यान चुनाव सुधारों पर केन्द्रित करने पर विचार करो। मतपत्र और मतदान मशीन पर, उम्मीदवारों की सूची के अन्त में ‘इनमें से कोई नहीं’ वाला प्रावधान कराओ। आज अधिकांश लोग केवल इसलिए वोट नहीं देते क्योंकि उन्हें एक भी उम्मीदवार पसन्द नहीं। उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार यदि लोगों को मिलेगा तो न केवल लोग वोट देने आएँगे बल्कि लुच्चों, लफंगों, चोरों, उचक्कों, अपराधियों को उम्मीदवार बनाने से पार्टियाँ भी डरेंगी। यह प्रावधान कराओं कि यदि कोई निर्वाचित आदमी अपने पद से त्याग पत्र देता है तो या तो उसके बाद सर्वाधिक वोट हासिल करनेवाले को विजयी घोषित किया जाए या फिर उप चुनाव का खर्च, त्यागपत्र देनेवाले से या उसकी पार्टी से वसूला जाए। चुनाव आयोग ने बरसों से कई सुझाव सरकार को दे रखे हैं। सरकार से वे सुझाव मनवाने के लिए अपने चुम्बकीय व्यक्तित्व का उपयोग करो।
27 फरवरी की तुम्हारी रैली में उमड़े जन सैलाब को, मुम्बई महा नगर पालिका के पूर्व आयुक्त जी. के. खैरनार ने भी सम्बोधित किया था। उनकी बातों पर ध्यान दो। भ्रष्ट सरकार को उखाड़ फेंकना बहुत ही आसान है किन्तु वैसी ही भ्रष्ट सरकार फिर से न बने, यह सुनिश्चत व्यवस्था करना बहुत कठिन है। यह कठिन काम ही अपने जिम्मे लो।
हम सब पर कृपा करो और याद रखो कि लोग ‘बाबा रामदेव’ के आह्वान पर सड़कों पर उतर रहे हैं, 'राम किशन यादव' के आह्वान पर नहीं। राम किशन यादव की महत्वाकांक्षाओं को बाबा रामदेव के विवेक से नियन्त्रित करो। ईश्वर तुम्हें युग पुरुष बनने का अवसर दे रहा है। यदि तुम चूके तो दोष ईश्वर का नहीं होगा। यह तुम्हारा दोष होगा और हम सबका, इस देश का दुर्भाग्य होगा।
लगे हाथों यह भी जान लो कि मैं तुम्हारा प्रशिक्षित योग अध्यापक हूँ और तुम्हारे सिखाए योग की कुछ क्रियाओं से खुद हो स्वस्थ बनाए रखने का नियमित जतन करता हूँ।
थोड़े लिखे को बहुत मानना और मेरी बातों का बुरा जरूर मानना।
तुम्हारा,
विष्णु बैरागी
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