श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का पहला गीत
‘ललकार’ का पहला गीत
समर्पण
अपने देश के लाड़लों को
जो मातृभूमि की रक्षा
में लगे हुए हैं
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दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है।
ओ बाबर, अकबर के बेटों, सैयद, शेख पठानों रे
झेलम तुम्हें पुकार रही है, मौसम को पहिचानो रे
आर्य देश के जवाँ जुझारों, अपनी भुजा उठाओ रे
चलो मरण-बेला आई है, लो त्यौहार मनाओरो रे
आजादी पर फिर खतरा है, फिर कश्मीर बुलाता है
स्वर्ण मुहरत फिर आया है, अवसर बीता जाता है
जब कि नगाड़ा बज ही गया है सरहद पर शैतान का
तो नक्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का
कभी इधर से कभी उधर से, घुसता है गुर्राता है
डल-झेलम की मधु लहरों पर, गन्दे पाँव लगाता है
केसर पर बारूद छिड़कता, अंगारे बरसाता है
न्यौता देता महाप्रलय को, अपनी मौत बुलाता है
भूल गया है हरफ-हरफ जब ही पाक कुरान का
तो नक्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
पहला स्वागत किया ठाठ से, बेरी और चिनारों ने
आग लगादी अरमानों में, शोखी भरे शिकारों ने
शेरों की चुप्पी का मतलब, समझा गलते सियारों ने
तो उगल दिया लाखों टन लावा, मस्जिद की मीनारों ने
मतलब वहाँ नया निकला है, आरती और अजान का
कि नक्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
बोल दिया है जब धावा तो, शेरों कदम हटाना मत
तोपों के प्रलयंकर जबड़े, अब वापस पलटाना मत
सिद्धान्तों की परिभाषा में अपने को उलझाना मत
धूल उड़ा देना पिण्डी की, तिल भर दया दिखाना मत
फिर कब ऐसा वक्त मिलेगा लोहू के भुगतान का
नक्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान को
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
अमन, अहिंसा, पंचशील के सरगम, कुछ दिन गाओ मत
भड़क उठा है हर जर्रा तो, भड़की आग बुझाओ मत
पकी फसल की तरह काट दो, जिन्दा एक बचाओ मत
लाख बार कट जाओ लेकिन, माँ का दूध लजाओ मत
हिन्दुकुश पर गाड़ के आना, नेजा हिन्दुस्तान का
नक्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
खुल कर दो-दो हाथ बताना, साँगाई तलवारों के
हथियारों से उत्तर देना, दुश्मन की हुकारों के
छाँट-छाँट कर मुण्ड काटना, घुसनखोर हत्यारों के
हमसे भेंट में लेना माथे, जयचन्दों गद्दारों के
बीन-बीन कर बदला लेना, जननी के अपमान का
नक्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
अरे नमाजी बड़े मजे से, अपना धरम निभाओ तुम
धूमधाम से ईद मना कर, खूब मलीदा खाओे तुम
लेकिन दिल दो दिल्ली को ही, गीत उसी के गाओ तुम
किसी गैर से हाथ मिलाकर, गैर नहीं कहलाओ तुम
मौसम मँडराया है सर पर, लोहू की पहचान का
नक्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का
जबकि नगाड़ा बज ही गया है
जिसको हमने जनम दिया है, अपना नमक खिलाया है
राष्ट्रपिता बापू का जिसको, हमने खून पिलाया है
जिसको हमने भाई माना, अब तक गले लगाया है
देखो तो उसने ही अपनी, माँ पर हाथ उठाया है
मिट जाओ पर निशाँ मिटा दो, ऐसे बेईमान का
नक्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का
जब कि नगाड़ा बज ही गया है
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इस संग्रह के, अन्यत्र प्रकाशित गीतों की लिंक -
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ललकार कविता-क्रम
01 स्वर्ण मुहरत
02 रूपम् से
03 निमन्त्रण
04 माँ ने तुम्हें बुलाया है
05 भारत माता से
06 हम बच्चों का है कश्मीर
07 गोरा बादल
08 अमर सिपहिया रे....
09 आज धरा बेहाल है
10 दो-दो बातें
11 मेरे देश के लाल
12 घड़ी बड़ी नाजुक है
13 सच कहता हूँ
14 चल तू मेरी कलम
15 लहरायेगा अमर तिरंगा
16 नई चुनौती
17 फूलों के बदले
18 याही का विश्वास
19 चल मतवाले
20 सिपाहियों का गीत
21 क़ाफिला बना रहे
22 हँसते-गाते
23 नौजवानों आओ रे
24 ओ मधुवन के माली
25 मुझे कमी किस बात की
26 कहते हैं कुदरत पर जादू
27 क्दल रहा है हिन्दुस्तान
28 अमर जवाहर (यह गीत उपलब्ध नहीं है।)
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05 भारत माता से
06 हम बच्चों का है कश्मीर
07 गोरा बादल
08 अमर सिपहिया रे....
09 आज धरा बेहाल है
10 दो-दो बातें
11 मेरे देश के लाल
12 घड़ी बड़ी नाजुक है
13 सच कहता हूँ
14 चल तू मेरी कलम
15 लहरायेगा अमर तिरंगा
16 नई चुनौती
17 फूलों के बदले
18 याही का विश्वास
19 चल मतवाले
20 सिपाहियों का गीत
21 क़ाफिला बना रहे
22 हँसते-गाते
23 नौजवानों आओ रे
24 ओ मधुवन के माली
25 मुझे कमी किस बात की
26 कहते हैं कुदरत पर जादू
27 क्दल रहा है हिन्दुस्तान
28 अमर जवाहर (यह गीत उपलब्ध नहीं है।)
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