श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की चौबीसवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की चौबीसवीं कविता
एक दिन
दाहिने हाथ ने
जल-कलश से
गमले के फूल-पातों को सींचा
और बाएँ हाथ ने
उसका एक फूल तोड़ा।
जल-कलश से
गमले के फूल-पातों को सींचा
और बाएँ हाथ ने
उसका एक फूल तोड़ा।
मनीषी मन ने
बाएँ हाथ को मरोड़ा
‘यह क्या पागलपन है?’
गमला बोला,
‘यही है सुबन्धु हाथों का
अपना-अपना धर्म
मनीषी होकर भी
नहीं समझते
पूर्व-अपूर्व का मर्म।’
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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