यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
नया खिलौना
चूँकि
मौत जिन्दगी की सदाबहार गलियों में खो गई थी
और कफनों की खपत कुछ कम हो गई थी
सो कुछ जरायमपेशा जुलाहों ने
कफन बुनना बन्द कर दिया है
और कफनों का सारा मुनाफा
एक मुश्त खर्च करके
बड़ी दया के साथ
उन्होंने एक नया खिलौना बनाया है
जो कुछ दिन हुए बाजार में आया है
नाम है जिसका ऐटम
जी हाँ स-र-ग-म
लेकिन नाश का
महल
लेकिन ताश का
बाजार में आजकल मौज है, दीवाली है
बस, इन्सान की हालत खस्ता है
रोटी और राहत पर राशनिंग है
पर खिलौना बहुत सस्ता है
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मौत जिन्दगी की सदाबहार गलियों में खो गई थी
और कफनों की खपत कुछ कम हो गई थी
सो कुछ जरायमपेशा जुलाहों ने
कफन बुनना बन्द कर दिया है
और कफनों का सारा मुनाफा
एक मुश्त खर्च करके
बड़ी दया के साथ
उन्होंने एक नया खिलौना बनाया है
जो कुछ दिन हुए बाजार में आया है
नाम है जिसका ऐटम
जी हाँ स-र-ग-म
लेकिन नाश का
महल
लेकिन ताश का
बाजार में आजकल मौज है, दीवाली है
बस, इन्सान की हालत खस्ता है
रोटी और राहत पर राशनिंग है
पर खिलौना बहुत सस्ता है
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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