श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की चौदहवीं कविता
तुम्हारा दाँव
‘शीलवती आग’ की चौदहवीं कविता
तुम्हारा दाँव
जीवन वह नहीं हैं
जो तुम जीते हो
जीवन वह है जो
तुम जीना चाहते हो।
बहस में वक्त मत गुजारो
निर्णय लो
संकल्प क्षण घायल पड़े हैं
सहलाओ उन्हें
प्राण गंगा में नहलाओ उन्हें
सुबह अगर स्याह है
तो
उसे लाली कौन देगा ?
धूप-छाँह के इस निर्णायक खेल में
तुम्हारे दाँव की ताली कौन देगा ?
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शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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