श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की ग्यारहवीं कविता
विडम्बना
‘शीलवती आग’ की ग्यारहवीं कविता
विडम्बना
-1-
सवेरे-सवेरे समाचार पत्र में पढ़ा
सम्पादकीय,
शीर्षक था
जागते रहो।
दिन चढ़ा तो
नागरिक संघर्ष समिति ने
आह्वान किया
जागते रहो।
शाम को आमसभा में
नेताजी ने अपील की
जागते रहो।
और रात भर चौकीदार चिल्लाता रहा
जागते रहो।
अब किसी दूर देश जाकर
अपना बिस्तर बिछाओ
इस देश में कोई नहीं कहता कि
आराम से सो जाओ।
सम्पादकीय,
शीर्षक था
जागते रहो।
दिन चढ़ा तो
नागरिक संघर्ष समिति ने
आह्वान किया
जागते रहो।
शाम को आमसभा में
नेताजी ने अपील की
जागते रहो।
और रात भर चौकीदार चिल्लाता रहा
जागते रहो।
अब किसी दूर देश जाकर
अपना बिस्तर बिछाओ
इस देश में कोई नहीं कहता कि
आराम से सो जाओ।
-2-
जगाते जगाते
वे इतने थक गए कि
खुद ही सो गए
और सोने वाले इतना सोए, इतना सोए कि
जागे तो देख कर
आसपास का हाल
बेहोश हो गए।
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वे इतने थक गए कि
खुद ही सो गए
और सोने वाले इतना सोए, इतना सोए कि
जागे तो देख कर
आसपास का हाल
बेहोश हो गए।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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