अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की पाँचवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा

चाहे सभी सुमन बिक जाएँ
चाहे ये उपवन बिक जाएँ
चाहे सौ फागुन बिक जाएँ
पर मैं गन्ध नहीं बेचूँगा.....
अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा

                        - 1 - 

जिस डाली ने गोद खिलाया, जिस कोंपल ने दी अरुणाई
लछमन जैसी चौकी देकर, जिन काँटों ने जान बचाई
इनको पहिला हक आता है, चाहे मुझको नोचें तोड़ें
चाहे जिस मालिन से मेरी पाँखुरियों के रिश्ते जोड़ें
ओ मुझ पर मँडराने वालों
मेरा मोल लगाने वालों
जो मेरा संस्कार बन गई, वो सौगन्ध नहीं बेचूँगा
अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

                        - 2 -

मौसम से क्या लेना मुझको, ये तो आएगा जाएगा
दाता होगा तो दे देगा, खाता होगा तो खाएगा
कोयल, भँवरों के सुर-सरगम, पतझारों का रोना-धोना
मुझ पर क्या अन्तर लाएगा पिचकारी का जादू-टोना
ओ नीलाम लगाने वालों
पल-पल दाम बढ़ाने वालों
मैंने जो कर लिया स्वयं से, वो अनुबन्ध नहीं बेचूँगा
अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

                        - 3 -

मुझको मेरा अन्त पता है, पंखुरी पंखुरी झर जाऊँगा
लेकिन पहिले पवन परी संग, एक-एक के घर जाऊँगा
भूल-चूक की माफी लेगी, सबसे मेरी गन्ध कुमारी
उस दिन ये मण्डी समझेगी, किसको कहते हैं खुद्दारी
बिकने से बेहतर मर जाऊँ
अपनी माटी में झर जाऊँ
मन ने तन पर लगा दिया जो, वो प्रतिबन्ध नहीं बेचूँगा
अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

                        - 4 -   

मुझसे ज्यादह अहं भरी है, ये मेरी सौरभ अलबेली
नहीं छूटती इस पगली से, नील गगन की खुली हवेली
सूरज जिसका सर सहलाए, उसके सर को नीचा कर दूँ?
ओ धरती के धनी कुबेरों! और तुम्हें कैसा उत्तर दूँ?
ओ प्रबन्ध के विक्रेताओं
महाकाव्य के ओ क्रेताओं
ये व्यापार तुम्हीं को गुभ हो, मुक्तक छन्द नहीं बेचूँगा
अपनी गन्ध नहीं बेचूँगा
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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