श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की दूसरी कविता
‘ओ अमलतास’ की दूसरी कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
अँधियारे से क्या डरते हो
अँधियारे से क्या डरते हो
अँधियारे से क्या डरते हो
क्या ऐसी बातें करते हो
आँख मसल कर देखो मीता!
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
अँधियारे से क्या डरते हो
क्या ऐसी बातें करते हो
आँख मसल कर देखो मीता!
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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शबनम के शीतल पानी में, सारी-सारी रात नहाई
केश नहीं बाँधे हैं अब तक, चूनरिया भी नहीं सुखाई
आँखों में सपने आँजे हैं, इसने लेकर नाम तुम्हारा
कितनों ने राहें रोकी पर, इसने मुड़कर नहीं निहारा
सिफ तुम्हारे लिये लगाई सूरज की बिदिया माथे पर
बाँहों में वरमाला लेकर बिलकुल नई-निकोर खड़ी है
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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अन्धे अम्बर की गठरी में, नहीं टटोलो तुम उजियारा
जब भी ढूँढोगे, पाओगे उसके घर में बस अँधियारा
शायद तुमने नाम सुना हो पूरब एक दिशा होती है
ज्योति कलश अपने माथे पर केवल वही सती ढोती है
जलता सूरज लिये गर्भ में, आज बही सतवन्ती प्राची
चाहे तुम मानो, मत मानो, लेकिन चारों ओर खड़ी है
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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अगर डरे तुम अँधियारे से, तब तो डरते ही जाओगे
अगर मरण को नमन किया तो, प्रतिपल मरते ही जाओगे
जीवन का मतलब है ज्वाला, ज्वाला का मतलब है जलना
जलने का मतलब है अपना, पन्थ स्वयं आलोकित करना
एक बार यदि टूट गया तो, व्रत का अर्थ बदल जाता है
ज्वाल-व्रता युग की गायत्री, जलती हुई हिलोर खड़ी है
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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आँखों की पुतली में बन्दी, रहता है आकाश बिचारा
ऐसा बन्दी भला करेगा, कैसे क्या उपकार तुम्हारा?
आँखों का संचालन मन से, मन का संचालन चिन्तन से
चिन्तन का संचालन तुमको, करना है खुद के जीवन से
आदर्शों की परिभाषाएँ, बड़ी विभाजित हैं, निर्मम हैं
जीवन की उजली आशाएँ, कितनी भाव विभोर खड़ी हैं
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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नहीं आँख के अन्धे हो तुम, नहीं गाँठ के पूरे हो तुम
माना मैंने, मानव हो सो, थोड़े बहुत अधूरे हो तुम
किन्तु पूर्ण की परछाई भी, बिना उजाले कहाँ मिलेगी
और उजाले की गति गंगा, नहीं यहाँ या वहाँ मिलेगी
ओ मानव के मानस पुत्रों! वापस लो वक्तव्य तुम्हारा
आज्ञा देती हुई जिन्दगी, कोमल किन्तु कठोर खड़ी है
पास तुम्हारे भोर खड़ी है
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संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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