यह किसने रास रचाया

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की छब्बीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



यह किसने रास रचाया

बिखर गया यह किसका कुंकुम
किसने मधु छलकाया
यह किसने रास रचाया

बहका-बहका वन लगता है
महका-महका मन लगता है
उमग उठे आँखों के डोरे
तरसा-तरसा तन लगता है
   
सुधियों की अमिया बौराई
हर सपना पगलाया
यह किसने रास रचाया


मलय पवन पाती क्या लाया
किसने किसको कहाँ बुलाया
क्यों पलाश ने पाँख पसारी
मधुकर को किसने ललचाया

रंग सुरंग रँगे सब किसने
कौन चितेरा आया
यह किसने रास रचाया


वसुधा के सिंगार सुहावन
पुण्य सरिस हर कोंपल पावन
गीत, अगीत सभी सुर लय से
कण-कण एक मुदित वृन्दावन

एकाकार हुए लगते हैं
ब्रह्म, जीव और माया
यह किसने रास रचाया
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























 


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