छुट्टी का दिन और तेज बरसता पानी। सुबह-सुबह का समय। ऐसे में तेजस आया तो मैंने अनुमान लगाया, निश्चय ही कोई बहुत ही जरूरी काम होगा। ऐसा, जिसे टाल पाना मुमकिन नहीं रहा होगा। मैंने कुछ नहीं पूछा। ‘बड़ेपन’ के अहम् में । यह सोचकर कि बरसते पानी में मतलब से आया हैै तो बताएगा ही। लेकिन उसने तो मुझे भीगो दिया। बोला - “थोड़ी जल्दी में हूँ काका! केवल यह कहने आया था कि चिन्ता की कोई बात नहीं है। आपका संकट काल समाप्ति पर है। बस! स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना और डॉक्टर से पूछ कर ही कोई दवाई लेना। अभी शास्त्री गुरुजी के यहाँ गया था। आपकी जन्म पत्री दिखाने। पत्री देखकर गुरुजी ने यही कहा।” मैं कुछ नहीं बोला। उसे असीसा। चाय पिलाई। वह नमस्ते करके, जिस फुर्ती से आया था, उसी फुर्ती से चला गया। मेरे प्रति उसकी चिन्ता से मेरा जी भर आया। एक बार फिर उसे असीसा। मन ही मन। लेकिन भविष्यवाणी सुनकर हँसी आ गई। यह भविष्यवाणाी है या नेक सलाह?
ज्योतिष और ज्योतिषियों को मैं अपनी सुविधा से ही लेता हूँ। न तो आँख मूँदकर विश्वास करता हूँ न ही हँसी उड़ाता हूँ। खुद को लेकर ही स्पष्ट नहीं हूँ। भ्रम में हूँ। नहीं जानता इस मामले में आस्तिक हूँ या नास्तिक? लेकिन इस पर निर्भरता और अन्धविश्वास को निरुत्साहित करता हूँ।
कोई चालीस बरस से अधिक का अरसा हो रहा है इस बात को। मन्दसौर में अखबार का सम्पादन करता था तो पाठकों की माँग पर अखबार में जब भविष्यफल छापना शुरु करना पड़ा तो शर्त रखी-“ सप्ताह में एक दिन छापूँगा। रोज नहीं”।मेरी शर्त मान ली गई। एक पण्डितजी से बात तय की और प्रति सोमवार साप्ताहिक भविष्य फल छपने लगा। लेकिन अचानक ही समस्या आ गई। पण्डितजी अकस्मात ही चार धाम यात्रा पर चले गए, तीन महीनों के लिए। हमें कई खबर दिए बिना। इतनी जल्दी किसी पण्डित से बात करना सम्भव नहीं हुआ। मैंने अनायास ही एक प्रयोग करना तय किया। उन दिनों राजा दुबे मन्दसौर में ही था। उसने ताजा-ताजा ही कलमकारी शुरु की थी। ‘धर्मयुग’ में छपनेवाले भविष्यफल का अन्धविश्वासी। इतना कि जिस दिन धर्मयुग आनेवाला होता, उस दिन, तय समय पर रेल्वे स्टेशन पहुँचकर, वहीं बण्डल खुलवाकर धर्मयुग की अपनी प्रति लेता, अपना राशि फल देखता और वहीं अगले सप्ताह के कामकाज का कच्चा खाका बनाकर आगे बढ़ता। मैंने उससे साप्ताहिक भविष्यफल लिखने को कहा। वह अचकचा गया। बोला-‘ऐसा कैसे लिख सकता हूँ?’ मैंने अपनी सारी कुटिलता उँडेल कर, अपनी अकल के अनुसार कुछ गुर बताए, भरोसा बँधाया। तनिक हिचकिचाहट सहित राजा ने साप्ताहिक भविष्यफल लिखना शुरु किया और ऐसा शुरु किया कि चल निकला। अब राजा आत्म विश्वास तथा अधिक उत्साह से साप्ताहिक भविष्यफल लिखने लगा। लेकिन छठवें सप्ताह ही, लिखते-लिखते वह ‘उचक’ गया। “ये तो सब गड़बड़ हो गया भाई सा'ब!” मैंने पूछा तो बोला - “धर्मयुग में भी ऐसा ही हो रहा हो तो?” मैंने भोलेपन से कहा कि ऐसा हो तो सकता है। उसने कलम फेंक दी। बोला “आज से भविष्यफल लिखना बन्द और पढ़ना भी बन्द।” बड़ी मुश्किल से राजा ने उस दिनवाला भविष्यफल लिखा।
उसी दिन मैंने मेरे कक्षापाठी अर्जुन पंजाबी से बात की। वह अब भी मुझ जैसा ही है। वह फौरन तैयार हो गया। हाँ भरने के बाद पूछा - “लेकिन यार! ये बता! लिखूँगा कैसे?” मैंने कहा - “बहुत आसान है। करना क्या है? कुछ भी तो नहीं! गए दो सप्ताहों के छपे भविष्यफल देख ले। उसमें जो भविष्यवाणी की गई है, उसे आगे बढ़ाते रहना! बस!” और अर्जुन ने पहले ही सप्ताह से, पूरे आत्म विश्वास से साप्ताहिक भविष्यफल लिखना शुरु किया और पण्डितजी के, तीर्थ यात्रा से लौटने तक पूरे खिलन्दड़पने से लिखता रहा।
यह सब याद आने के बाद जिज्ञासा हुई कि इन दिनों भविष्यफल कैसे लिखे जा रहे हैं। मेरे यहाँ डाक से आनेवाले कुछ साप्ताहिक अखबारों में छपे साप्ताहिक भविष्यफल देख कर मेरी तबीयत हरी हो गई। आनन्द आ गया। मुझे लगा, या तो मैं अस्सी के दशक में आ गया हूँ या फिर भविष्यफल लेखन अभी भी अस्सी के दशक में ही ठहरा हुआ है। इन अखबारों के, चालू सप्ताह के बारह राशियों के भविष्यफलों के वर्गीकृत अंश यहाँ पेश कर रहा हूँ। खुद ही सोचिएगा कि ये भविष्यवाणियाँ हैं या नेक सलाहें। इनमें से प्रत्येक वाक्य, अलग-अलग राशि के भविष्यफल का हिस्सा है।
पारिवारिक सुख-शान्ति: जीवन साथी कीभावना को महत्व न दिया तो कटुता सम्भव है। पारिवारिक स्थितियों में सामंजस्य न रहा तो कटुता सम्भव है। जीवन साथी की शिकायत बनी रहेगी। परिवार में परिजन वाणी संयम न रखेंगे तो विवाद सम्भव है। पारिवारिक स्थितियाँ अनुकूल रहने से सुखद स्थिति बनेगी। जीवन साथी को सहयोग-अपेक्षा पूरी करना हितकर रहेगा। परस्पर अविश्वास से पारिवारिक सामंजस्य गड़बड़ाएगा। परिजन-मित्रों से बेहिचक परामर्श-सलाह लेने से ही हित होगा।
नौकरी: नौकरी में विरोधियों से सचेत न रहे तो अहित करेंगे। नौकरी में औरों से अलग दिखने से अच्छी पूछ परख होगी। नौकरी में परिवेश अनुकूल बनने से तनाव दूर होगा तथा अधिकारी वर्ग का विश्वास जीतने में सफल होंगे। नौकरी में परिवेश मनचाहा न रहने से मन में असन्तोष रहेगा। नौकरी में सम्हलकर चलना होगा तथा व्यर्थ का पंगा लेने से बचना होगा। व्यर्थ के वाद विवाद एवम् हठ से बचते हुए नौकरी में काम से काम रखना हितकर रहेगा। नौकरी में परिवेश अनुकूल न रहने से असन्तोष रहेगा।
आजीविका: आजीविका के क्षेत्र में कार्य योजना को आगे बढ़ाने पर लाभ की स्थिति बनेगी। आजीविका के क्षेत्र में लक्ष्य तक पहुँचने से कार्यसिद्धि एवम् लाभ होगा। आजीविका की बाधा एवम् समस्या दूर होने से राहत मिलेगी। प्रयास में शिथिलता एवम् लापरवाही का विपरीत प्रभाव कारोबार धन्धे पर पड़ेगा। कारोबार में समयानुसार परिवर्तन से लाभ होगा। आय वृद्धि से बचत की सम्भावना रहेगी। कारोबारी प्रतिस्पर्धा समाप्त होने से आय सन्तोषजनक होगी। धन सम्पत्ति, जोखिम एवम् अग्रिम सौदे के कार्य सावधानी से करने होंगे। अतिरिक्त आय से वित्तीय स्थिति सुधरेगी। आकस्मिक व्यय आने से संचित धन व्यय होगा।
विद्यार्थी: विद्यार्थियों को सहज लक्ष्य नहीं मिलेगा। विद्यार्थियों को अनुकूल परिवेश मिलने से लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे। विद्यार्थियों को बाहरी तड़क-भड़क के बजाय अपने लक्ष्य पर ध्यान देना होगा। विद्यार्थियों को नई तकनीक का लाभ मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग को सहज में सफलता नहीं मिलेगी।
जीवन निर्देश: वाहन चलाने में सावधानी रखें। अति उत्साह में निर्णय से चूकेंगे। लोभ-लालच से बचना होगा। बाहरी लोगों से सावधानी से सहायता लेनी होगी। प्रयास में शिथिलता रखी तो बनता काम रुक सकता है। अति उत्साह जोश में लिए गए निर्णय में चूक से हानि सम्भव है। विरोधी के पुनः सक्रिय रहने से तनाव होगा। बिचौलियों से कार्य बिगड़ेगा।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा। स्वास्थ्य एवं आत्मबल बने रहने से रुके कार्य पूरे होंगे।
मैं ज्योतिष को न तो खरिज करता हूँ न ही आत्मसात। यह भी मानता हूँ कि ‘राशि फल’ में, उस राशि के तमाम लोग शरीक होते हैं इसलिए उस भविष्यवाणी में स्वाभाविक ही ‘सामूहिक भाव’ होता है। उसमें वैयक्तिकता की तलाश करना ज्योतिष और ज्योतिषी के प्रति अन्याय और अत्याचार ही होगा। वैयक्तिकता की पूर्ति हेतु तो व्यक्तिगत आधार पर ही गणना करनी पड़ेगी।
मुझे लगता है, भविष्य के प्रति जिज्ञासा अच्छे-अच्छों की (सबकी ही हो तो ताज्जुब नहीं) कमजोरी है। कोई ताज्जुब नहीं कि हर कोई विश्वामित्र की दशा में आ जाता हो। आखिर, नास्तिक होना भी तो एक आस्था ही है! (स्वर्गीय) शरद जोशी ने कहीं लिखाा था कि अमावस की आधी रात को, घने बरगद के नीचे से गुजरते समय अच्छे से अच्छा नास्तिक भी हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है। ऐसा ही कुछ भविष्य फल को लेकर भी होता होगा। ज्योतिष के पक्षकार इसे विज्ञान बताते हैं। उनसे असहमत नहीं। किन्तु इस विधा के वैज्ञानिकों तक पहुँचना जन सामान्य के लिए सम्भव नहीं। और जो ज्योतिषी जन सामान्य तक पहुँचते हैं, उनकी ज्योतिष-योग्यता का पता कौन करे?
वैज्ञानिकता और सामान्यता के बीच की यह दूरी ही इन दोनों के अस्तित्व को पुरजोर बनाए हुए है। बनाए रखेगी भी।
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