यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
लोहिया के प्रति
(डा. राममनोहर लोहिया की मृत्यु पर एक रचना)
(डा. राममनोहर लोहिया की मृत्यु पर एक रचना)
ओ बगावत की प्रबल उद्दीप्त
पीढ़ी के जनक!
हम तुम्हें कितना जीएँगे
कह नहीं सकता
न जाने क्या समझकर
आँख मूँद चल दिए हो तुम
हलाहल जो बचा है
हम उसके कितना पिएँगे
कह नहीं सकता!
पीढ़ी के जनक!
हम तुम्हें कितना जीएँगे
कह नहीं सकता
न जाने क्या समझकर
आँख मूँद चल दिए हो तुम
हलाहल जो बचा है
हम उसके कितना पिएँगे
कह नहीं सकता!
तुम्हें देखा, तुम्हें परखा
तुम्हें भुगता, तुम्हें समझा
तुम्हें हर रोज पढ़ते हैं
तुम्हारा ढंग अपना कर
कभी हम बात करते हैं
तो वे मूरख समझते हैं कि लड़ते हैं!
मुबारक हो उन्हें उनकी समझ!!
नई भाषा, नई शैली
नए रोमांच के सर्जक!
तुम्हारी हर अदा भरसक सहेजेंगे
अमानत है,
शिराओं में तुम्हारे स्वप्न
ऐसे छलछलाते हैं कि
हर बेजान गुम्बज को
हमारे स्वप्न से गहरी शिकायत है
मुबारक हो उन्हें उनकी शिकायत!
तुम्हारा ‘वाद’ क्या समझूँ
तुम्हारी जिद, तुम्हारा ढंग प्यारा है
शुरु जो कर गए मेरी जवानी के भरासे कर
सुझे वो जंग प्यारा है।
यकीं रखो कि अन्तिम फैसला होगा वही
जो तुमने चाहा था
तुम्हारा हौसला झूठा नहीं होगा
भले ही टूट जाऊँ मैं, मेरी काया
मेरी रग-रग
मगर संकल्प जो तुमने दिया
टूटा नहीं होगा!
जवानी आज समझी है
कि तुम क्या थे,
तुम्हें जो दर्द था
वह हाय! किसका था।
तुम्हारा अक्खड़ी लहजा
तुम्हारी फक्कड़ी बातें
तुम्हारी खुश्क-सी रातें
न समझो इस लहू ने टाल दी हैं
या कि सदियाँ भूल जाएँगी
न अपना प्राप्य तुमको दे सके हम सब
मगर उसको तुम्हारी
धूल पाएगी!!
करोड़ों उठ गए वारिस
तुम्हारी एक हिचकी पर
कहीं विप्लव कुँआरा
या कि ला-औलाद मरता है?
हमारी धमनियों के तुम
मसीहा थे, मसीहा हो
सुनो!
तुमको बगावत का हर एक क्षण
याद करता है!!
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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