बहसरत वे

 

बहसरत वे

 




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की तेईसवीं कविता 





बहसरत वे

उनकी बहस का विषय
अभी भी
न तो आम आदमी है
न आम आदमी की समस्या।
वे बहस कर रहे हैं
स्याही के रंग पर!
वह स्याही
जो इतिहासकार
इतिहास लिखते समय
उनके नाम के लिए
प्रयोग में लायंेगे।
स्वनाम के सिवाय
शेष सब के नाम
उन्हें अभी से काले दिखाई दे रहे हैं
इस ओछी बहस में
वे एक दूसरे की जान ले रहे हैं।
खून का रंग लाल
और पसीने का रंग पनीला होता है
वे इस बात तक को भूल गए हैं।
वे इस बात को भी याद नहीं रख पाये कि
इतिहास के पृष्ठ
उनकी प्रतीक्षा में
कोरे नहीं पड़े रहेंगे
कितना भ्रम है उन्हें कि
काल अश्व पर वे
अनन्त काल तक चढ़े रहेंगे! .
उनका यशोगान करने वाले
पालतू तोतों को वे
इतिहासकार मान बैठे
उफ्
कितने भोले और
आत्मरतिलीन हैं वे
इतिहास की जठरानल
और पाचनशक्ति से अपरिचित
और कितने उदासीन हैं वे?
वे
अपने खुद के सिवाय
आज तक हुए नहीं किसी के
बहस ही बहस में
वर्तमान को पीना
और अत्यन्त व्यस्त निकम्मा जीवन जीना
कोई उनसे सीखे।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग




यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’  ने  उपलब्ध कराया  है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 








12 comments:

  1. उद्वेलित करती हुई कृति ।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्‍यवाद। बडी क़पा आपकी।

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  3. Replies
    1. टिप्‍पणी के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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  4. स्याही पर बहस हो रही है .... कितना सार्थक व्यंग्य है । झकझोरती हुई रचना ।

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  5. 'पॉंच लिंकों का आनन्‍द' पर यह पोस्‍ट देखकर अच्‍छा लगा। बहुत-बहुत आभार और धन्‍यवाद।

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  6. टिप्‍पणी के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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  7. विद्वान जो बहस करते हैं वे सिर्फ और सिर्फ बहस ही करते हैं बहुत ही सटीक लिखा उनके लिए....
    बहस ही बहस में
    वर्तमान को पीना
    और अत्यन्त व्यस्त निकम्मा जीवन जीना
    कोई उनसे सीखे।
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन
    -----

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    1. टिप्‍पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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