श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की सातवीं कविता
यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
तीन आस्था घोष
-1-
मुझे सपने नहीं आते
क्योंकि मैं उथला हूँ पर
मेरी नींद गहरी है।
मैं बुझकर नहीं, थक कर सोता हूँ
मुझे सपने नहीं आते।
पता नहीं, सपनों का दम
कैसे घुटता है?
अरमानों का जनाजा कैसे उठता है?
यार! प्यार मैंने भी किया है
पर ‘मेहनत’ से ‘मशक्कत’ से।
थे देखो मेरी हथेलियों पर छालों के औघड़
भभूत रमाये बठे हैं।
सख्त इतने हैं कि आनेवाली पीढ़ी के
स्वप्न-महल का इन पर शिलान्यास
करवा लो और
चाँद पर धक्का खानेवाले रॉकेट
इन पर आसानी से उतरवा लो!
भौतिकता से परेशान भूतों! मुझसे ईर्ष्या करो
मुझे सपने नहीं आते हैं
वे सब, तुम पर मँडराते हैं।
क्योंकि मैं उथला हूँ पर
मेरी नींद गहरी है।
मैं बुझकर नहीं, थक कर सोता हूँ
मुझे सपने नहीं आते।
पता नहीं, सपनों का दम
कैसे घुटता है?
अरमानों का जनाजा कैसे उठता है?
यार! प्यार मैंने भी किया है
पर ‘मेहनत’ से ‘मशक्कत’ से।
थे देखो मेरी हथेलियों पर छालों के औघड़
भभूत रमाये बठे हैं।
सख्त इतने हैं कि आनेवाली पीढ़ी के
स्वप्न-महल का इन पर शिलान्यास
करवा लो और
चाँद पर धक्का खानेवाले रॉकेट
इन पर आसानी से उतरवा लो!
भौतिकता से परेशान भूतों! मुझसे ईर्ष्या करो
मुझे सपने नहीं आते हैं
वे सब, तुम पर मँडराते हैं।
-2-
मैं रोता नहीं हूँ
क्योंकि,
मैं किसी ऐसे-वैसे का होता नहीं हूँ
उगता वही है जो बोया जाता है
मैं खूब जानता हूँ कि क्यों रोया जाता है
पर मैं रोता नहीं हूँ
हाँ, कुछ खारा-गरम पानी
मेरी पलकों से पिघलकर
मेरे गालों तक आता है
मेरा गला तक भीग जाता है
पर वे न आँसू हैं
न वो रोना है
वह तो थके दीप्त जीवन का पसीना है
‘जो नहीं बहे तो मैं मर जाऊँ’
यह कहने मैं किस-किस के घर जाऊँ?
तुम चाहो तो सबसे कह देना कि
मैं रोता नहीं हूँ
क्योंकि मैं किसी ऐसे-वैसे का होता नहीं हूँ।
-3-
मैं मरूँगा नहीं,
क्योंकि
मैं कोई ऐसा काम करूँगा नहीं
मरे वो जो जिन्दगी से
बुझे, थके, टूटे या हारे
या जो पराये दर्द का पंथ नहीं बुहारे
मैं ताजा, प्रदीप्त, अटूट और अजित हूँ
बेशक देख लो, भुगत लो
मुझे, मेरी ताजगी, मेरी दीप्ति और मेरी हिम्मत को।
तुम अवाक् रह जाओगे
कि मैं असाधारण रूप से साधारण हूँ
अपने-आप का अकेला उदाहरण हूँ।
आओ मेरे जैसे बनो
कुछ धूल मिट्टी में सनो
अपने साधारणत्व में कुछ फेर या फार
मुझे करना नहीं है
क्योंकि मुझे मरना नहीं है।
मेरे अमरत्व पर मुझे भरोसा है
और तुम भी यकीन रखो कि
मैं मरूँगा नहीं
क्योंकि मैं कोई ऐसा काम करूँगा नहीं।
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क्योंकि
मैं कोई ऐसा काम करूँगा नहीं
मरे वो जो जिन्दगी से
बुझे, थके, टूटे या हारे
या जो पराये दर्द का पंथ नहीं बुहारे
मैं ताजा, प्रदीप्त, अटूट और अजित हूँ
बेशक देख लो, भुगत लो
मुझे, मेरी ताजगी, मेरी दीप्ति और मेरी हिम्मत को।
तुम अवाक् रह जाओगे
कि मैं असाधारण रूप से साधारण हूँ
अपने-आप का अकेला उदाहरण हूँ।
आओ मेरे जैसे बनो
कुछ धूल मिट्टी में सनो
अपने साधारणत्व में कुछ फेर या फार
मुझे करना नहीं है
क्योंकि मुझे मरना नहीं है।
मेरे अमरत्व पर मुझे भरोसा है
और तुम भी यकीन रखो कि
मैं मरूँगा नहीं
क्योंकि मैं कोई ऐसा काम करूँगा नहीं।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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