वक्तव्य

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की तीसरी कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



वक्तव्य

दुर्भाग्य से मैं भी मनुष्य हूँ
आपकी ही तरह पंच-तत्व का पुतला
दर्द वाला, सपनों वाला
दिलवाला, अपनों वाला
आपसे कुछ भिन्न इसलिए दिखता
कि आप पढ़ते हैं
मैं लिखता हूँ।
वरदान का हूँ या श्राप का हूँ
जैसा भी हूँ
आप का हूँ
दर्द आपका पीता हूँ, पचाता हूँ
उसे सजाता हूँ
सँवारता हूँ, गीतों में गाता हूँ ।
मुहब्बत का मारा हूँ
याने कि बनजारा हूँ
आपकी हाट में आ गया हूँ
भूले या अनजाने
कुछ छाले, कुछ आँसू
कुछ आहें, कुछ टीसें, कुछ कराहें
चाहे माने न मानें
लाया हूँ शौक फरमाइए
चाहे जोर से अलापिए, चाहे अकेले में गाइए
ये सारी दौलत, ये सारी पूँजी
न तो मेरी है, न मेरे बाप की है
मैं तो बहाना हूँ हुजूर!
माया सब आपकी है।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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