यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
मेरे देश! शकुन ले
(स्व. लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु पर एक रचना)
(स्व. लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु पर एक रचना)
सूरज, चाँद, सितारों की छाती पर सदा-सदा जो लहराता है
वही हमारा अमर तिरंगा
हाय रे! एक बार फिर अकुलाया है
जो इसको थामे निकला था
गंगा की धरती से तनकर
वही हमारा वामन इसको
कफन बना
ललिता के द्वारे
चिर निद्रा में लीन लिपटकर आया है।
जमुना के पावन तीर!
तुम्हारी भी क्या किस्मत है?
बापू, चाचा, लालबहादुर
सबके रथ तुम तक आकर के ठहर गए चुपचाप स्वयं ही,
आजादी के तीन कुम्भ जुड़ गए
तुम्हारे महलों में
कौन पाप मेरी पीढ़ी का फूटा जो
भटक रहा है सारा यौवन आँसू के इन मेलों में?
वही हमारा अमर तिरंगा
हाय रे! एक बार फिर अकुलाया है
जो इसको थामे निकला था
गंगा की धरती से तनकर
वही हमारा वामन इसको
कफन बना
ललिता के द्वारे
चिर निद्रा में लीन लिपटकर आया है।
जमुना के पावन तीर!
तुम्हारी भी क्या किस्मत है?
बापू, चाचा, लालबहादुर
सबके रथ तुम तक आकर के ठहर गए चुपचाप स्वयं ही,
आजादी के तीन कुम्भ जुड़ गए
तुम्हारे महलों में
कौन पाप मेरी पीढ़ी का फूटा जो
भटक रहा है सारा यौवन आँसू के इन मेलों में?
कल तक लोहू पीने वाले मेरे भारत!
आज अमन की खातिर थोड़ा विष भी पी ले
आँसू पोंछ उठा फिर माथा
इन बदले परिवेशों में जी ले।
ताशकन्द ने अमन दिया है
बेशक हमसे बहुत लिया है।
जो भी हुआ बड़ा वैसा है
लेकिन कोई बात नहीं
लालबहादुर की अरथी को
मिल जाए कन्धा अयूब का
ये भी कम सौगात नहीं है।
कन्धा!
वो भी दायाँ कन्धा
बेटों से पहिले बैरी का कन्धा ।
मेरे देश! शकुन ले
कर प्रणाम उस हस्ताक्षर को
जो ललिता के भव्य भाल की बिंदिया के बदले पाया है
मेरा मन तुझसे पहिले अकुलाया है।
ओ अयूब के दाएँ कन्धे!
तूने मेरे महाबली का सिर चूमा है
मैं, मेरा घाव भरा मन, मेरे जलते गीत
अमन के सारे सपने
तुझपर न्यौछावर करता हूँ।
मेरे पनघट, मेरे मन्दिर, मेरे गिरजे, मेरी मस्जिद
मेरी महफिल और चमन ये सारे मेरे
माँग रहे हैं तुझसे वादा सिर्फ यही
कि, हमने अपने हाथों से अपना सूरज तोड, तुझे सौंपे हैं
दो टुकड़े
ये दुनिया जिनको पाकिस्तान कहा करती है
उन टुकड़ों को मेरे खण्डित महासूर्य से, लालच में आकर
जलवा मत देना
किसी गैर से लेकर के फिर टूटी बन्दूकें
अपने पर रख माँ पर गोली चलवा मत देना।
सैंतालीस करोड़ अमन के बन्दे हम
दुआ माँगते हैं कि तुम्हारे ऊपरवाली गर्दन
तनी रहे, कुछ खम न हो,
फिर हाथ हमारा छोटे भाई पर उठे नहीं, और
ताशकन्द से जमना तक की राहों पर
और भले कुछ हो
पर मातम ना हो।
-----
संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
-----
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.