श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की पहली कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की पहली कविता
तुम: उनके लिए
उन्होंने मान लिया है
अपना उपजाऊ खेत तुम्हें
ऋतु और मौसम के अनुसार
मण्डी का रुख भाँपकर
डालते हैं तुममें
अपनी हीन महत्वाकांक्षाओं के बीज
उग जाएँ तो
फसलें उनकी,
मर जाएँ तो
गालियाँ तुम्हें ।
कहेंगे-
“जमीन ही बंजर है
खा जाती है बीज को
हजार हल हाँको
कितना ही खाद पानी दो
रंच मात्र नहीं है उपजाऊ
रहेगी बाँझ-की-बाँझ
मिलना-मिलाना कुछ भी नहीं है,
अपना तो
धन भी गया
ढोला भी गया।’
और ढूँढ़ने लग जाते हैं
तुम जैसा ही खेत कोई नया।
किसान से ज्यादा सयाने किसान हैं
तुम्हारे ये तथाकथित मालिक।
वो तो
तुम ही नहीं हो बिकाऊ
वरना ये तुम्हारी
कॉलोनियाँ काट देते और
वो जो है ना?
व्यक्तित्व और अस्तित्व तुम्हारा,
उसके इंच-इंच का
पैसा बाँट लेते।
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अपना उपजाऊ खेत तुम्हें
ऋतु और मौसम के अनुसार
मण्डी का रुख भाँपकर
डालते हैं तुममें
अपनी हीन महत्वाकांक्षाओं के बीज
उग जाएँ तो
फसलें उनकी,
मर जाएँ तो
गालियाँ तुम्हें ।
कहेंगे-
“जमीन ही बंजर है
खा जाती है बीज को
हजार हल हाँको
कितना ही खाद पानी दो
रंच मात्र नहीं है उपजाऊ
रहेगी बाँझ-की-बाँझ
मिलना-मिलाना कुछ भी नहीं है,
अपना तो
धन भी गया
ढोला भी गया।’
और ढूँढ़ने लग जाते हैं
तुम जैसा ही खेत कोई नया।
किसान से ज्यादा सयाने किसान हैं
तुम्हारे ये तथाकथित मालिक।
वो तो
तुम ही नहीं हो बिकाऊ
वरना ये तुम्हारी
कॉलोनियाँ काट देते और
वो जो है ना?
व्यक्तित्व और अस्तित्व तुम्हारा,
उसके इंच-इंच का
पैसा बाँट लेते।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
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