फागण अलबेलो

श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की अठारहवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



फागण अलबेलो

अब के होरी पर म्हारो जोबन अरथे आवेगा
आँबड़ली पर कोयलड़ी भी मारू गावेगा
के फागण अलबेलो
बोल फागण अलबेलो के
रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

काचो रंग कसूमल अब तो साजन पर न्हीं छाँटूँगा
बालम की पागाँ पर दुसमण काचो काटूँगा
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

मानसरोवर के आँगणिये लाल हजारी फूलेगा
तरवाराँ की धाराँ ऊपर गोर्याँ झूलेगा
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेग रण को
फागण अलबेलो

साजनियाँ तू अब के म्हारे चूनर मत मोलाजे रे
मरदाणी के एक तिरंगो कफन रंगाजे रे
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

बाजूबन्द मत लाजे रे छेला रकड़ी मती घड़ाजे रे
लाणी वे तो दो बन्दूकांँ लेतो आजे रे 
फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

बिड़ला घर को धूरो म्हारा ललवट पर लगाऊँगा
बेरी का लोही ती म्हारा हाथ रचाऊँगा
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

रंग बिरंगी रसपिचकारी चोली पर न्हीं झेलूँगा
पेकिंग की गलियाँ में खूनी होली खेलूँगा
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

कन्त कामणी वारो फागण बालम अब न्हीं गाऊँगा
खूब गुलाल उड़ईली अब बारूद उड़ाऊँगा
के फागण अलबेलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

दिल्ली जई ने राजघाट पर खूनी तिलक लगाऊँगा
इन्दिराबई ने मंगल सुत्तर देई ने आऊँगा
के फागण अलबेलो
बोल फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो

अमराई में रण नोता बालम को पंथ निहारूँगा
बेरागी का गीत गावताँ वगत गुजारूँगा
के फागण अलबलो
हाँ रे फागण अलबेलो
के रंग उड़ेगा रण को
फागण अलबेलो
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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