यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
भारत माता से
भारत माता ओ--
प्यारी माता ओ--
हर कीमत पर निपटेंगे माँ! इन चीनी शैतानों से
क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
मौज हमारी ज़िन्दाबाद
फौज हमारी ज़िन्दाबाद
ये मौके भी जिन्दाबाद
ये धोखे भी जिन्दाबाद
कौम के दुश्मन के पंजों से हमने तख्त छुड़ाये हैं
इतिहासों को गर्म खून से बार-बार नहलाये हैं
कल ही हमने गोआ में भी अपने लाल चढ़ाये हैं
नई फसल में अबकी हमने लाखों कफन उगाये हैं
तेरी जमीं है सुर्ख अभी तक खून भरे अफसानों से
तो, क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
तेरा आसमाँ जिन्दाबाद
तेरा पासबाँ जिन्दाबाद
नये नजरिये जिन्दाबाद
खून के दरिये जिन्दाबाद
जंग खोर बारूद बिछाते तेरे नेक इरादों पर
शक करते शैतान आज भी पंचशील के वादों पर
मुर्दे, चुनना महल चाहते उन्हीं सड़ी बुनियादों पर
ऐंठ रहे हैं लाल भेड़िये शेरों के शहजादों पर
नई तवारीखें लिख देंगे हम भी नये निशानों से
अब क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
नये निशाने जिन्दाबाद
नये तराने जिन्दाबाद
नई कमानें जिन्दाबाद
नये दिवाने जिन्दाबाद
साफ बात है, अमन की ताकत ऐटम से भी ज्यादा है
अमन रहे, ईमान रहे हम सबका यही इरादा है
लालकिले और राजघाट का कहना सीधा-सादा है
नहीं पराई थाली देखो यही अमन का वादा है
पर, अपने हक के लिये लड़ेंगे ऐसे लाख जहानों से
अब, क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
नई लड़ाई जिन्दाबाद
नई चढ़ाई ज़िन्दाबाद
नया खून भी जिन्दाबाद
ये जुनून भी जिन्दाबाद
ये जो तेरे जर-जेवर पर हत्यारा ललचाया है
गंगा के दामन पर ये जो दाग लगाने आया है
ब्रह्मपुत्र के अमन-चमन पर बेगैरत गुर्राया है
इतिहासों के बेईमान ने सारा नमक चुकाया है
पर, एक न जिन्दा जा पायेगा नेफा के मैदानों से
अब क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
नये हौसले जिन्दाबाद
नये फैसले जिन्दाबाद
नई कहानी जिन्दाबाद
नई जवानी जिन्दाबाद
महाकाल, मृत्युंजय बन कर मस्ताने डट जायेंगे
पेकिंग में अब और बताशे कभी नहीं बँट पायेंगे
सिर चाहे कट जाँय करोड़ों, नाक नहीं कटवायेंगे
घटे सुहागी चूनर लेकिन कफन नहीं घट पायेंगे
जब, समझौता कर लिया देश ने, सूने कब्रस्तानों से
तो क्या जीतेमा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
तेरी सब्रें जिन्दाबाद
तेरी कब्रें जिन्दाबाद
अब ये जमघट जिन्दाबाद
जामे मरघट जिन्दाबाद
जामा मस्जिद जाग गई है, जाग गई वो काशी है
ताज महल में शोले भड़के, भड़क गई वो झाँसी है
लाखों भामाशाह जगे हैं, जागे पीर उदासी हैं
स्याह पुतेगी अब वो सुर्खी, जो कि खून की प्यासी है
जेल तोड़ कर बाहर आगई लछमी सभी खजानों से
तो, क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
ये आजादी जिन्दाबाद
सोना-चाँदी जिन्दाबाद
वीर गुमानी जिन्दाबाद
औढर दानी जिन्दाबाद
खून खौलता है सागर का, परबत सब अँगड़ाये हैं
नदियों में लावा बहता है, नाले शीश उठाये हैं
फूल-फूल की नसें तनीं हैं, भँवरे तक गुर्राये हैं
कंकण तोड़ दिये कलियों ने, रण के साज सजाये हैं
तड़फ उठे हैं महाकाल भी इन बुलन्द तूफानों से
तो क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
ये अलबेले जिन्दाबाद
रण के मेले जिन्दाबाद
ये मनुहारें जिन्दाबाद
ये अंगारे जिन्दाबाद
ले बहिनाँ! तू तोड़ ले अपनी नई चूड़ियाँ हाथों की
छोड़ दे सुलझी-सुलझी रातें, उलझी-उलझी बातों की
क़सम तुझे तेरे दिलवर की और उसकी सौगातों की
कसम रेशमी रिश्तों की और राज भरी उन बातों की
पीछे मत रह जाना तू भी दिलवर या दीवानों से
तो क्या जीतेगा कोई बाज़ी भारत की सन्तानों से
तेरा दिलवर जिन्दाबाद
तेरा रहबर जिन्दाबाद
तेरे सपने जिन्दाबाद
तेरे अपने जिन्दाबाद
मन्दिर की पूजाओं में और मस्जिद की नम्माजों में
सिजदा करके दुआ माँगना इन बुलन्द आवाज़ों में
आजादी का दुश्मन या रब! आये चाहे जहाज़ों में
लेकिन जाये तौबा करके या फिर जाये जनाजों में
लिपट गये हैं लफ्ज खून के आरती और अजानों से
तो क्या जीतेगा कोई बाज़ी भारत की सन्तानों से
नई नमाजें जिन्दाबाद
भक्त-नमाजी जिन्दाबाद
नई इबादत जिन्दाबाद
नई शहादत जिन्दाबाद
वीर जवाहर सा सेनानी हमको राह दिखाता है
इन फौलादी औलादों से काल तलक घबराता है
होड़ लगी है सबसे पहिले मस्तक कौन कटाता है
देखेंगे अब कौम का दुश्मन जिन्दा कैसे जाता है?
इज्जत ज्यादह प्यारी है जब हमको अपने प्राणों से
तो क्या जीतेगा कोई बाजी भारत की सन्तानों से
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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