यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।
धरती धूजेगा
सेला का मेला में म्हारो बालम रमवा जावे रे
देखो म्हारी माँग में कंकू न्ही मावे रे
के धरती धूजेगा
हाँ रे धरती धूजेगा
जूझारो म्हारो रण में जूझेगा
के धरती धूजेगा
धरती धूजेगा
सेला का मेला में म्हारो बालम रमवा जावे रे
देखो म्हारी माँग में कंकू न्ही मावे रे
के धरती धूजेगा
हाँ रे धरती धूजेगा
जूझारो म्हारो रण में जूझेगा
के धरती धूजेगा
राता डोरा आँखड़ल्याँ में, मूछड़ल्याँ न्ही छूटे रे
यो हुँकारे तो चीनी छोर्याँ छाती कूटे रे
के नाहर गरजे रे
हाँ रे नाहर गरजे रे
के चाऊ घर की चिन्ता करजे रे
के धरती धूजेगा
सिंघ सजन का भुजदण्ड देखो नत फड़के नत फाटे रे
लूमण-चूमण भूलीग्यो ने पोंचा काटे रे
के छाती ठोके रे
बोल छाती ठोके रे
के जम जाया ने कूण रोके रे
के घरती धूजेगा
वारी रे म्हारा भीमा थारी आरती उतारूँ रे
वीजरी का टुकड़ा जैसा बेटा वारूँ रे
परणी मरदाँ की
हाँ रे परणी मरदाँ की
निछारू कोराँ अपणा हिरदा की
के धरती धूजेगा
एकल्लो नही जावा दूँगा म्हूँ भी लारे चालूँगा
घाव भरी थारी काया पर झालो झालूँगा
के दुनिया देखेगा
हाँ रे दुनिया देखेगा
ने गाँधी बापू फुलड़ा फेंकेगा
के धरती धूजेगा
सात फेरा फिरताँ बालम हिलमिल होगन खाया रे
जनम-जनम का कोल निभईलाँ व्ही दन आया रे
के बोको देवा दे
बोल बोको देवा दे के
मौको जावे लावा लेवा दे
के धरती धूजेगा
मत समझो भारत ने धरती बकर्याँ की और गायाँ की
चारा जूँ काटूँगा फौज करोड़ सिपायाँ की
के बैरी मानीजा
हाँ रे बैरी मानीजा
तू थोड़ा में ही हगरी जाणीजा
के घरती धूजेगा
या एकली अम्मर जोड़ी आखर दम तक जूझेगा
बैरी कई खुद काल भी म्हां का पगल्या पूजेगा
के धरती लावाँगा
बोल धरती लावाँगा के
माड़ी थारो हुकम उठावाँगा
के धरती धूजेगा
पेकिंग पर नेजा गाड़ी ने गले लगाजे रे
तो जोबन वारूँगा
हाँ रे जोबन वारूँगा के
न्हीतर थारो शीश उतारूँगा
के धरती धूजेगा
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन,
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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