अन्तर का विश्वास

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की सत्रहवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




अन्तर का विश्वास

दिन दिन बढ़ता जाता मेरे अन्तर का विश्वास है
भारत ही ला सकता जग में सुरभीला मधुमास है

आज जिधर भी उठती आँखें, दिखता बस पतझार है
दिशा-दिशा से मानवता का आता हा हा कार है
चुपके-चुपके माँड रहे सब राँगोली बारूद से
बात अमन की करते लगते अभी नहाये दूध से
हर रजधानी लगती अब तो, ऐटम का रनिवास है
भारत ही ला  सकता जग में सुरभीला मधुमास हे
 
डर से काँप रही है दुनिया, आँख लगी अख़बारों पर
जिन्दा लाशें घूम रहीं हैं, मरघट के अंगारों पर
कदम-कदम पर बिछे हुए, ये सन्देहों के जाल हैं
मन ही मन सब समझ रहे, पर कहने को खुशहाल हैं
गहरे पैठो तो पाओगे हर इन्सान उदास है
भारत ही ला सकता जग में सुरभीला मधुमास है

आज जिये या मरे मनुजता, सबसे बड़ा सवाल है
टाल रहा इस बड़ी बात को, हर माई का लाल हैं
करे शिकायत कोई किससे, इस खूँखार जमाने में
लगे हुए हैं एक-एक से, घातक शस्त्र बनाने में
आमन्त्रित कर लिया मनुज ने, सचमुच सत्यानास है
भारत ही ला सकता जग में सुरभीला मधुमास है

सिर्फ नहीं भटका है भारत, बढ़ता है तूफानों में
दर्द छिपाये इसने सारे, इठलाती मुसकानों में
अपना पंथ बनाया इसने, उस पर निर्भय बढ़ता है
नहीं किसी को लड़वाता है, नहीं किसी से लड़ता है
बड़े भाग से जिम्मेदारी, आई इस पर खास है
भारत ही ला सकता जग में सुरभीला मधुमास है
 
कोई बात नहीं है साथी, सारा बोझ उठायेंगे
आग लगेगी उससे पहिले, हम बादल बन जायेंगे
नहीं जलेगी धरती माँ अब, शोलों से अंगारों से
आखिर दम तक जूझेंगे हम, पग-पग पर पतझारों से
सत्य, अहिंसा का सेनानी, विजयी बारहों मास है
भारत ही ला सकता जग में सुरभीला मधुमास है
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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