ज्योति जले



श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
         ‘गौरव गीत’ का सत्रहवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 


ज्योति जले

                                ज्योति जले जन-जन के मन में
                                ज्योति जले.....ज्योति जले.....
                                ज्योति जले जन-जन के मन में

- 1 -

                                सेवादल की अमर ज्योति यह
                                इतिहासों की प्रखर ज्योति यह
                                सत्य, अहिंसा, अनुशासन औ’
                                आदर्शों की अजर ज्योति यह
                                        राष्ट्र प्रेम और एक्य भाव का
                                        तेज लुटाती है जन-गण में
                                                ज्योति जले जन-जन के मन में.....

- 2 -

                                आज राष्ट्र पर जब संकट है
                                अग्नि परीक्षा बड़ी विकट है
                                नव-यौवन का आवाहन है
                                कौन दूर है, कौन निकट है?
                                        यह बेला फिर नहीं मिलेगी
                                        खून खौलते नव-यौवन में
                                                ज्योति जले जन-जन के मन में.....

- 3 -

                                सीमा पर ही नहीं लड़ाई
                               भ्रम में रहीं रहे तरुणाई
                                खेत, खदानों, खलिहानों में
                                रण की ऋतु देती दिखलाई
                                        कदम-कदम पर जूझ रही है
                                        भारत माँ इस भीषण रण में
                                                ज्योति जले जन-जन के मन में.....

- 4 -

                                सेवा, श्रम की अलख जगाने
                                तरुणाई को तिलक लगाने
                                बलिदानों की महाज्योति ले
                                काँग्रेस का पंथ दिखाने
                                        निकल पड़े हैं सजग सिपाही
                                        जायेंगे हर घर-आँगन में
                                                ज्योति जले जन-जन के मन में.....
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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