बधाई

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की दसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।




बधाई

कितना बदगुमान है अँधेरा
कि
रोज बढ़ा कर अपना घेरा
धौंस देता है मुझे
और डाँट कर पूछता है
कहाँ है तेरा सवेरा?
और मैं कहता हूँ
बुलाऊँ सवेरे को?
तो फिर ये छोटा करके उस घने
घेरे को
अपने पिता पश्चिम को आवाजें देने लगता है।
चीखता है सहायता के लिए।
मैं पूरब की ओर मुँह भर करता हूँ
कि ये भाग चलता है
और इसकी कायरता पर
सूरज मेरा भाई
दिन भर जलता. है।
सनातन है अँधेरे से मेरी लड़ाई
उस लड़ाई में जो मेरा साथ दे
उसे हार्दिक बधाई।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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