.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ।
हौसला हमारा
अब अँधेरा देश में होने न पायेगा
देखते ही देखते लो, बात बन गई
दे दी हमने हर दिशा को, रोशनी नई
ये उबलता खून नया, करता है वादा
पूरा होगा देश का, हर-एक इरादा
इस बहार पर कभी पतझर न आयेगा
अब अँधेरा देश में होने न पायेगा
हौसला हमारा.....
जो भी कोई जी को चुरायेगा काम से
दूर जो रहेगा, पसीने के नाम से
जिन्दगी नहीं है जिसकी, देश के लिये
उसको कोई हक्क नहीं है, यहाँ जिये
(अब) हर-एक अपनी रोटी खुद कमायेगा
अब अँधेरा देश में होने न पायेगा
हौसला हमारा.....
एक-एक कण पे अब, मुहर है देश की
साँझ भी है देश की, सहर है देश की
फूल भी हैं देश के, शूल देश के
आम भी हैं देश के, बबूल देश के
इस निराली गंध से जग महमहायेगा
अब अँधेरा देश में होने न पायेगा
हौसला हमारा.....
काफिला चला है फिर, निराली शान से
पग उठे हैं देश के, नये गुमान से
मंजिलों के गुम्बजों ने, दी पुकार है
खत्म हुई घाटियाँ, आये उतार हैं
इस किरण से सारा जहाँ जगमगायेगा
अब अँधेरा देश में होने न पायेगा
हौसला हमारा.....
‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ यहाँ पढ़िए।
‘गौरव गीत’ का तीसरा गीत ‘हम सिपाही सेवादल के’ यहाँ पढ़िए
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‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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