.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ।
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं
लेकिन मन से एक हैं
भाषा बेशक न्यारी है
लेकिन क्या फुलवारी है
साँस-साँस में समा रहा है, सेवा का सन्मान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
बच्चा-बच्चा बोल रहा है, हम भारत के वीर हैं
सबसे पहले हम हिन्दी हैं, कश्मीरी हैं बाद में
गीदड़ कैसे घुस आयेगा, अब शेरों की माँद में
कफन उगाते हैं अब तक भी, झेलम के मैदान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
सेवादल का नेजा हमने, हिमगिरी पर लहराया है
साहस के पुतले हैं देखो, सरहद के रखवाले हैं
बर्फों में रहते हैं फिर भी, जलती हुई मशालें हैं
प्राण गँवा कर भी रक्खेंगे, हम जननी की शान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
भगतसिंह के भाई हम सब, आये हैं पंजाब से
लिपटी हैं गाथाएँ जिनकी, झेलम और चिनाब से
जागरूक प्रहरी हैं हम सब, भारतवर्ष महान् के
छुड़ा दिये हैं छक्के हमने, लाख बार शैतान के
आठों पहर लिये बैठे हैं, हम हाथों पर जान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
आन-मान, अभिमान की धरती, सचमुच बड़ी महान है
गाँव-गाँव में पंचायत का हमने राज लुटाया है
प्रजातन्त्र के महामन्त्र को, घर-घर तक पहुँचाया है
सबसे पहले महाक्रान्ति को, दिया हमीं ने मान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
शीश हथेली पर रखकर हम, गाते गीत दुलार के
शीश कटाकर पाटी हमने, जाति-पाँति की खाई को
कौन भला भूलेगा ‘रज्जब’, और ‘बसन्त’ से भाई को
भारत ही है खुदा हमारा, भारत ही भगवान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
राजघाट पर कर्तव्यों की, कसमें हमने खाई हैं
सेवादल की नींव में हमने, खून हमारा डाला है
दिल्ली ने ही दुनिया भर में, आज किया उजियाला है
हमने गाड़ा लाल किले पर, युग का अमर निशान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
अनुशासन और आदर्शों की छाायाओं में पलते हैं
गंगा-जमना की धरती में, हम सैनिक उपजाते हैं
दूघ, दही, घी, मक्खन, मिसरी, जन-जन तक पहुँचाते हैं
शिक्षा, दीक्षा लेते हमसे, बड़े-बड़े गुणवान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
इतिहासों को गौरव हम पर, सेवक, साधक, बलिदानी
‘राजेन्दर बाबू’ सा सैनिक, सबसे प्रथम बिहार का
सेवादल को सौंपा हमने, रत्न सकल संसार का
युग-युग तक रक्खेगी जननी, उस पर गरब गुमान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
गीतों की माटी में देखो, अंगारों की लाली है
नेताजी के पद चिह्नों पर, हमने कदम बढ़ाये हैं
उस माटी ने सकल विश्व से, अपने पग पुजवाये हैं
दिया हमीं ने नये देश को, राष्ट्रगीत का गान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
बात-बात में काम अनोखे, हम वीरों ने कर डाले
भाषा की दीवारें हमने, हँसते-गाते तोड़ी हैं
अन्तर से अन्तर की कड़ियाँ, हमने ही तो जोड़ी हैं
अमर एकता के दावों पर, हमने रखे प्राण रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
ये उत्कल की टुकड़ी देखो, नया, निराला खून है
पंचवर्ष के आयोजन का, ये प्यारा मजमून है
हीरा कुँड को बाँध दिया है, हमने इन दो हाथों से
भर डाला है आँचल माँ का, इस्पाती सौगातों से
बना रहे हैं हम भारत में, नये-नये इन्सान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
‘नया पसीना, देश बनाये’, देता ये सन्देश है
थाम कुदाली, कजरी गाओ, नया देश निर्माण करो
खून बहाने वाले बेटों! चलो पसीना दान करो
चलो गुँजाओ श्रम गीतों से, परबत और खदान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
राह बनाते हँसते-गाते, काँटों में, अंगारों में
रक्त सना इतिहास हमारा, देता रोज दुहाई है
कंगाली, भुखमरी, गरीबी, इनसे आज लड़ाई है
नव-भारत के निर्माता हम, करते नव निर्माण रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
आज हमारे कंचनपुर का, कण-कण देखो इतराता
आजादी के रण में हमने, अपने लाल चढ़ाये हैं
आँसू नहीं बहाये हमने, नेजे नहीं झुकाये हैं
इसकी माटी में लिपटे हैं, लाख-लाख बलिदान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
शहर हमारा ‘काकिनाड़ा’, सचमुच तीरथ स्थान है
सेवादल का जनम हुआ है, इसी निराले गाँव में
चली वहीं से अमर-बेलि यह, काँग्रेस की छाँव में
सबसे पहले हमने गाये, सेवादल के गान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
सेवादल की सौरभ में हम, गन्ध मलय की लाये हैं
सेवादल का पहिला प्रशिक्षण केन्द्र चला जिस धूल में
आज पँखुरियाँ सभी लगी हैं, उस ही प्यारे फूल में
ये सारा परिवार हमारे, गौरव की पहिचान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
हमने उत्तर दिया देश को, सबसे बड़े सवाल पर
नव-समाज की नव-रचना का, घोष हमीं ने उच्चारा
भेद-भाव के महादैत्य को, हमने ही तो ललकारा
देख हमारे महाचरण को, दुनिया है हैरान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
जयचन्दों के मन्सूबों को, हमने नंगे कर डाले
सेवादल की वर्दी पहिने, बैठे हम हुशियार हैं
हर कीमत पर गद्दारों से, लड़ने को तैयार हैं
नहीं सहेंगे आजादी का, तिल भर भी अपमान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
पल-पल, छिन-छिन होता इसका, अधिकाधिक विस्तार है
देश-देश के भाई आते, हमसे हाथ मिलाने को
हम भी जाते हैं दुनिया में, यह सौरभ फैलाने को
मिलते ही जाते हैं दिन-दिन, नये-नये वरदान रे
सब सन्तानें भारत माँ की, सबका हिन्दुस्तान रे
तन से भ ऽ ले अनेक हैं.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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