‘चटक म्हारा चम्पा’ की अट्ठाईसवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
चटख चाँदणी
चटख चाँदणी चितचोर, चाली दूजे देसड़ले
जी दूजे देसड़ले
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चकवा चकवी मिलवा लागा
फूल कमल का खिलवा लागा
रस पीवा की वेराँ जावे
जागो म्हारा भमरा कलियाँ जगावे
कलियाँ की गलियाँ में सोई लिदा जी आखी रातलड़ी
ओ आखी रातलड़ी
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटक चाँदणी चितचोर चाली
नैन रसीला खोलो जी छबीला
गाठा-बैठा वेई जावो, सोवो मती ढीला
म्हारो मूँडो देखो झट, म्हारे रेटे जाणो है
सुसराजी ने न्हावा ने, पाणी चढ़ाणो है
ऊबी दिखूँगा तो सासूजी काढ़े आँखड़ली
ओ काढ़े आँखड़ली
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली
आप ती तो म्हूं हऊ जो, तारो ऊग्याँ जागीगी
धान पीस्यो, पाणी लई ने चूल्हा दोरी लागीगी
छाछ बिलोई, म्हने कचरा काढ्या
दूध निकार॒यो, वाछरू धवाड्या
छाणॉं थेपी ने कीदो वायदो जी, पिया हाँपड़ली
ओ जी हाँपड़ली|
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली
चूनरी ओढ़ी ली, करली चोटी
डाबा में दाबी दी दी, ऊनी-ऊनी रोटी
काजर घाल्यो हिंगलू लगायो
चूल्हा ऊपर दूध चढ़ायो
आपकी गादी में म्हारो शीश लेई ने भरदो माँगड़ली
ओ जी माँगड़ली
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली
उठताँ ही ने धरती के, धोक दो जी रसिया
माता-पिता ने, नमो मन बसिया
दातण मोड़ो, न्हाओ नखरारा
कर लो कलेवो, कुड़े जावा वारा
पाँगाँ बाँधी ने देखो काच में मूँछाँ वॉंकड़ली
ओ मूँछाँ वाँकड़ली
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली
उठी जाओ न्हीं तो देखो, पाणी छाँटू गा
फेर भी उठोगा तो, नाक नीचे काटूँगा
फेर चलाऊँगा गरगली, म्हूँ सासूजी ती कूँगा
घी न्हीं घालूँगा, गऊँ की रोटी न्हीं दूँगा
तावड़ा में उठे वण की नार, पिया रेईजा बाँझड़ली
ओ सा बॉंझड़ली
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली
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चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी यह महत्वपूर्ण टिप्पाी आज देख पाया। विलम्बित उत्तर के लिए क्षमा करें। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह सुंदर काव्य !
ReplyDeleteउठी जाओ न्हीं तो देखो, पाणी छाँटू गा
ReplyDeleteफेर भी उठोगा तो, नाक नीचे काटूँगा
फेर चलाऊँगा गरगली, म्हूँ सासूजी ती कूँगा
घी न्हीं घालूँगा, गऊँ की रोटी न्हीं दूँगा
तावड़ा में उठे वण की नार, पिया रेईजा बाँझड़ली
ओ सा बॉंझड़ली
जागो म्हारा हिवड़ा का हार जागी जाओ सा
चटख चाँदणी चितचोर चाली----वाह....आनंद आ गया
टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सचमुच में बहुत ही मीठी और शरारती पंक्तियॉं हैं।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
लाजवाब।
टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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