झरामर रातलड़ी

 

झरामर रातलड़ी

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की इकतीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।





झरामर रातलड़ी

झरामर रातड़ली आँधी अपार
प्राण प्यारा बन्‍धु आज करूँगा म्हूँ प्यार

जाणे कोई प्रेमी की टूटीगी आस
असरूँ आज आकाश छोड़े निसाँस
नेणा में म्हारे कोऽनी नींद को निवास
रेई-रेई ने वाट नारूँ खोली-खोली द्वार
प्राण प्यारा बन्‍धु आज करूँगा म्हूँ प्यार

दूर कोई नदिया के पेले- पेले पार
झाड़ी वारी राड़ी और घुप्प अन्‍धकार
गहरा-गहरा वन के वीचे भूली म्हारो प्यार
कई लेवा ऊबा म्हारा हिवड़ा का हार
प्राण प्यारा बन्‍धु आज करूँगा म्हूँ प्यार

(गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजली के एक गीत का मालवी अनुवाद)
  
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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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